विचार

प्रो. एनके सिंह लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं भाजपा का नेतृत्व प्रेम कुमार धूमल पहले से ही कर रहे हैं, चाहे वह पहले पार्टी के नेता घोषित नहीं हुए थे। इस बात में कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि भाजपा को करीब 39 सीटें मिल सकती हैं। दूसरी ओर कांगे्रस को

(अंकित कुंवर, नई दिल्ली ) ‘किसान पर भी तो बरसें चुनावी घटाएं’ शीर्षक से लिखे लेख में कर्म सिंह ठाकुर ने राजनीतिक दलों के चुनावी घोषणा पत्रों अथवा भाषणों में किसानों के उल्लेख को महत्त्वपूर्ण बताया है। विधानसभा चुनाव में विभिन्न राजनीतिक दलों की जुबान से किसानों के लिए हितकारी बातें अन्य मुद्दों के समक्ष

(डा. शिबम कृष्ण रैणा, अलवर ) चिदंबरम जब गृह मंत्री थे, तब तो ऐसा कोई बयान उन्होंने नहीं दिया कि कश्मीर की स्वायत्तता के प्रश्न पर पुनः विचार होना चाहिए। अब अचानक क्या बात हो गई? आखिर स्वायत्तता भी किस बात की? जिहादी और अलगाववादी जिस आजादी की मांग रहे हैं, क्या उनके दबाव में

चुनाव की राजनीतिक हवाओं में पार्टियों का तरीका, तैयारी और तेवर क्या हो सकते हैं, इसका एक प्रदर्शन देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार को कर गए। कहना न होगा कि भाजपा ने अपना तरीका पूरी तरह बदला, तैयारी की और अब अंतिम पड़ाव में तेवर दिखा रही है। ये तेवर ही थे, जो मोदी

रमेश चंद्र ‘मस्ताना’ लेखक, नेरटी, कांगड़ा से हैं साहित्यकारों की लेखनी को उचित सम्मान और मानदेय नसीब नहीं हो सका है। चुनावी उम्मीदवार साहित्यिक समाज की इन मांगों को भले ही घोषणा पत्र में स्थान नहीं दे पाए हों, लेकिन सत्ता में आने के बाद संबंधित क्षेत्र के कल्याण में योगदान का संकल्प तो ले

अर्थव्यवस्था, आर्थिक सुधार और कारोबार करने की आसानी आदि के मद्देनजर अब भारत का विश्व में 100वां स्थान है। 2015 और 2016 में 190 देशों में से भारत 130वें स्थान पर था। 2014 में जब मोदी सरकार आई, तब भी भारत 142वें स्थान पर था। लिहाजा एक ही अर्थवर्ष के दौरान 30 स्थानों की छलांग

(सुरेश कुमार, योल, कांगड़ा ) भाजपा ने मुख्यमंत्री पद के लिए प्रेम कुमार धूमल के नाम की घोषणा करके उन्हें इस बात का इनाम दे दिया है कि उन्होंने पांच साल तक सरकार को घेरे रखा। वैसे पांच साल सत्ता पक्ष और विपक्ष आरोप-प्रत्यारोप में ही उलझे रहे। भाजपा ने अपना विजन डाक्यूमेंट और कांग्रेस

(सुमन बाला, खुंडियां, ज्वालामुखी ) भारत सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यह कहते हुए हमारा सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। यह लगाव हमें अपने पूर्वजों से विरासत में मिला है। आज जिस दौर से भारत गुजर रहा है, उसे देखकर कई बार हताशा भी होती है। भ्रष्टाचार तो जैसे हमारे हवा, पानी में घुल

डा. अश्विनी महाजन  लेखक, पीजीडीएवी कालेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर हैं अर्थव्यवस्था पिछले कुछ समय से विदेशी और घरेलू निवेश दोनों कम होने और जीडीपी ग्रोथ के मंद होने के दर्द से गुजर रही है। रैंकिंग में इस सुधार से अब वह बेहतरी की तरफ आगे बढ़ सकती है। आर्थिक जानकार ऐसा मान रहे