विचार

( सूबेदार मेजर (से.नि.) केसी शर्मा गगल ) दैनिक जीवन में कहीं रत्ती भर भी विघ्न पड़ जाए, तो सारा दिन व्यर्थ महसूस होता है। हड़ताल चाहे ट्रांसपोर्ट की हो, बैंक की या फिर डाक्टरों की, असहनीय दिखती है। हड़ताल तब होती है, जब कर्मचारियों और प्रबंधन में किसी विषय को लेकर टकराव होता है।

( लक्ष्मी चंद, कसौली, सोलन ) प्रदेश सरकार ने आवारा पशु मुक्त पंचायत को 15 लाख का पुरस्कार देने की घोषणा की है, जो कि अच्छी पहल है। लेकिन इस बात की कौन देख-रेख करेगा कि रात को वाहनों में भर कर पशु किसने कहां से लाकर दूसरे स्थान पर छोड़ दिए हैं। पशुओं का

( इंदु पटियाल, कुल्लू ) इसमें कोई संदेह ही नहीं हो सकता कि देवभूमि की महिलाएं बेहद परिश्रमी और ईमानदार हैं।  प्रदेश में भले ही पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए 50 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की गई है, फिर भी यहां की साहसी महिलाओं ने ओपन सीटों पर चुनाव जीतकर अपनी काबिलीयत का

फिर वही क्षेत्रवाद और हिमाचल विधानसभा सत्र में यही ढाल और तलवार। दोनों प्रमुख दल मुद्दों से बड़े क्षेत्रवाद पर पहुंच गए और जहां पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और सत्ता के सरताज वीरभद्र सिंह के बीच अतीत तथा भविष्य के बीच क्षेत्रवाद एक सियासी सफर से अलहदा नहीं। वीरभद्र सिंह ने राजनीतिक दौड़ कांगड़ा

( कंचन शर्मा लेखिका, स्वतंत्र पत्रकार हैं ) कचरा प्रबंधन के लिए जगह-जगह रिसाइकिलिंग स्टेशन बनाना, जैविक कचरे को खाद में परिवर्तित करने के लिए आधुनिक संयंत्रों का बंदोबस्त, नई डंपिंग साइट तैयार करना, सफाई व्यवस्था हेतु कर्मचारियों की तैनाती की पहल बजट से हो। साथ ही नए शौचालयों, स्नानागारों व सीवरेज व्यवस्था के लिए

एक बहुत पुराना प्रसंग याद दिला रहा हूं। उत्तर प्रदेश में सुचेता कृपलानी को मुख्यमंत्री बनाया गया था। सरकार कांग्रेस की थी। कांग्रेस में चंद्रभान गुप्ता, कमलापति त्रिपाठी सरीखे नेताओं ने देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से आग्रह किया कि उपचुनाव का समय आ गया है, लिहाजा आपको प्रचार के लिए सुचेता जी के

( ललित गर्ग लेखक, स्वतंत्र पत्रकार हैं ) कब तक नारी के अस्तित्व एवं अस्मिता को नौचा जाता रहेगा? कब तक खाप पंचायतें नारी को दोयम दर्जे का मानते हुए तरह-तरह के फरमान जारी करती रहेगी? भरी राजसभा में द्रौपदी को बाल पकड़कर खींचते हुए अंधे सम्राट धृतराष्ट्र के समक्ष उसकी विद्वत मंडली के सामने

( किशोर औटी (ई-मेल के मार्फत) ) केरल में साम्यवाद बनाम हिंदुत्व का संघर्ष कोई नई बात नहीं है, बल्कि इसकी जड़ें काफी पुरानी व गहरी हैं। शुरुआती दौर में इस समस्या का कोई प्रभावी हल न निकाले जाने के कारण आज उसका भयंकर विस्फोट हो रहा है। केरल में चल रहे घमासान में ज्यादा

( डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर ) स्थिति नित्य बिगड़ रही, नहीं हुआ बदलाव, पंक्ति पीडि़तों की बढ़ी, रिसते हैं नित घाव। है समाज गतिशील अति, पर है पुरुष प्रधान, शहर गांव हर मोड़ पर, देवी का अपमान। यह विडंबना है बहुत, सख्त नियम कानून, फिर भी प्रति पल हो रहा, इज्जत का खून। कैसे