देश अपनी ही मिमिक्री से डरने लगा है। आवारा गाय कूड़ेदान से दाना चुन रही थी, तो देश को लगा वह उसकी भूख की मिमिक्री कर रही है। देश आगे बढ़ा तो देखा विपक्ष की रैली बोल रही थी, उससे ऐसी मिमिक्री देखी नहीं गई, लिहाजा टीवी की मिमिक्री देख कर शांत हो गया। देश को लगता है कि भारतीय परंपराओं से हटकर केवल मिमिक्री कलाकार ही सोच सकता है। खौफ इतना कि देश अब यू-ट्यूब पर रिटायर पत्रकारों और चौराहे पर बुद्धिजी
देश में एक राष्ट्र, एक चुनाव की प्रक्रिया के लिए समय-समय पर आवाज उठाई जाती है। इसके लिए केंद्र सरकार ने एक कमेटी का गठन भी किया है। इसका नेतृत्व पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद कर रहे हैं। कमेटी ने आम लोगों से विभिन्न प्लेटफार्म पर एक राष्ट्र एक चुनाव के लिए राय देने के लिए कहा है ताकि इस प्रक्रिया के लिए आमजन के मन की बात को भी समझा जाए।
कहानी के प्रभाव क्षेत्र में उभरा हिमाचली सृजन, अब अपनी प्रासंगिकता और पुरुषार्थ के साथ परिवेश का प्रतिनिधित्व भी कर रहा है। गद्य साहित्य के गंतव्य को छूते संदर्भों में हिमाचल के घटनाक्रम, जीवन शैली, सामाजिक विडंबनाओं, चीखते पहाड़ों का दर्द, विस्थापन की पीड़ा और आर्थिक अपराधों को समेटती कहानी की कथावस्तु...
एक बार फिर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और सरकार की खरीद नीति का विश्लेषण जरूरी हो गया है, क्योंकि इन दोनों से, एक हद तक, कुछ खास फसलों को ही फायदा है। ये नीतियां बाजार में विकृतियां पैदा कर रही हैं। तेल के बीज और दालों के किसानों को दो स्तरों पर नीतिगत भेदभाव झेलना पड़ रहा है। उनके एमएसपी कागजों पर ही लिखे हैं, जबकि धान, गेहूं और गन्ने के साथ ऐसा नहीं है। इन फसलों को या तो सरकार प्रत्यक्ष तौर पर खरीदती है अथवा गन्ने के लिए चीनी मिलों को भुगतान करने को बाध्य करती है। राजस्थान में सरसों करीब 5000 रुपए प्रति
हिमाचल के वित्तीय हालात प्रदेश को फरियादी बना चुके हैं या हमने अपने अर्थतंत्र के तमाम सबूतों को केंद्र के पास गिरवी रख दिया। भले ही डबल इंजन सरकार के पहरावे में पूर्व सरकार के पांच साल निकल गए या अब व्यवस्था परिवर्तन की राह पर कांग्रेस सरकार की जद्दोजहद सामने आ गई, लेकिन पर्वतीय प्रदेश का वजूद अब केंद्र का खिलौना बना न•ार आ रहा है। केवल एक बार धूमल सरकार के वक्त में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने हिमाचल को गले लगाया और आगे बढऩे की प्रेरणा दी, अन्यथा ढोल-ढमाकों ने सिर्फ सियासी घों
इंडिया गठबंधन की चार बैठकों के बावजूद सीट शेयरिंग को लेकर कोई नतीजा नहीं निकलने से साफ संकेत हैं कि यह मुद्दा बोतल के जिन्न की तरह है, दलों की एकता भंग हो सकती है...
25 जनवरी 1971 को पूर्ण राज्य बना हिमाचल एक खूबसूरत पहाड़ी राज्य है। यहां के ऐतिहासिक मंदिरों और प्राचीन ग्रंथों में मिले उल्लेख के कारण इस हिमालयी क्षेत्र को पूर्व में देवभूमि के नाम से जाना जाता था। प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री डा. वाईएस परमार की प्रदेश के निर्माण में अहम भूमिका रही है, इसलिए उन्हें हिमाचल निर्माता के रूप में जाना जाता है। हिमाचल में आय के संसाधन नाममात्र थे, लोग गरीब थे और जीवनयापन के लिए कृषि पर निर्भर थे। इसलिए वाईएस परमार ने हिमाचलियों के हितों की रक्षा के लिए 1972 में विशेष कानून बनाया था। इसका मुख्य उद्देश्य दूसरे राज्यों के धनी लोगों को प्रदेश में जमीन खरीदने से रोकना था। इसके लिए हिमाचल प्रदेश टेनैंसी एं
ईडी अपने काम पर लगी है। नेताजी अपने काम पर लगे हैं। सरकार अपने काम पर लगी है और सीबीआई अपने काम पर लगी है। किसी को ऊपर से निर्देश हैं। किसी को नीचे से निर्देश हैं। पूरे देश में सब कुछ ऊपर नीचे हो रहा है। ईडी वाले नेताजी को नोटिस भेज कर अपने पास बुला रहे हैं और नेताजी कह रहे हैं कि उन्हें अभी कुछ दिन ध्यानमग्न रहना है, इसलिए कोई उनके ध्यान में खलल नहीं डालेगा। अब नेताजी ध्यान लगाकर कहां ध्यान लगा रहे हैं, यह सीबीआई की जांच का विषय हो सकता है। ईडी इस तरह की जांच नहीं करती। उसे इस तरह का कोई एक्सपी
भगवान श्री राम का नाम लेते ही मानसिक शांति मिलती है। वह सनातन धर्म या भारत के लिए ही आदर्श नहीं हैं, बल्कि सारी दुनिया के लिए हैं। उनकी जन्मभूमि अयोध्या में लगभग 500 वर्ष बाद उनका जो भव्य मंदिर बन रहा है और वहां 22 जनवरी को राम लल्ला की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है, उसकी खुशी जाहिर करने के लिए जो तैयारियां चल रही हैं उन्हें देखकर लग रहा है कि दीपावली का त्योहार आने वाला है। हमारे देश में ही नहीं, बल्कि दुनिया