विचार

इतना वक्त गुजर गया, उन्हें कुछ पता ही नहीं चला। कल तक जो अपने आपको नवांकुर कह कर उनके गमलों में रोपित हो जाना चाहते थे, आज वह अचानक बरगद बन कर उन्हें अपने साये से महरूम कर देना चाहते हैं। कल तक जो उन्हें क्रांतिकारी कह उन पर आलोक आरोपित कर उसकी विरासत का ध्वज जो जाना चाहते थे, आज उन्हें बीते जमाने की अंधेरी परछाई कह उससे यूं अलग हुए कि जैसे चिहुंक कर कहते हो, छाया

भारत सरकार इस लक्ष्य को लेकर चल रही है कि भारत विश्व की तीन बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में होगा तथा जो रोडमैप अगले 25 वर्षों (2047 तक) का बनाया है, इसमें भारत पांच ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था तथा 10 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था होगी। इसको पूरा करना शायद भारत के लिए मुश्किल नहीं होगा, अगर परिस्थितियां अनुकूल रही। भारत ने 2023-24 वित्त वर्ष में विकास दर का लक्ष्य 7 प्रतिशत रखा है। भारत की अर्थव्यवस्था जो

बंधु! आज ज्ञान का सबसे सशक्त माध्यम कोई है तो बस ये सोशल मीडिया है। किताबें पुस्तकालयों की अलमारियों में पड़ी धूल फांक रही हैं। फेसबुक, व्हाट्सएप दिन रात बांच रही हैं। उन्हें कोई छूना तो दूर, देखना भी नहीं चाहता। गए वे दिन जब कहा जाता था कि गुरु बिन ज्ञान नहीं। गए वे दिन जब कहा जाता था- गुरुब्र्रह्मा, गुरुर्विष्णु:, गुरुर्देवो महेश्वर:! गुरुरेव परंब्रह्म, तस्मै श्री गुरवे नम:! आज तो यत्र तत्र सर्वत्र यही गूंज रहा है- फेसबुकब्र्रह्मा, व्हाट्सएपर्विष्णु:, इंस्टाग्रामर्देवो महेश्वर:! मैसेंजर परंब्रह्म, तस्मै श्री सोशल मीडिया नम:! आज सोशल मीडिया बिन ज्ञान न

भारत बहुत विशाल देश है। विभाजन के बाद भी कन्याकुमारी से लेकर पंजाब में अटारी तक, उत्तर-पूर्व से लेकर पश्चिम तक, हिमाचल की चोटियों से लेकर सागरों के संगम तक विशाल भूभाग में फैला भारत देश है। अपने देश के सभी भागों में बसे भारतीयों को जोडऩे के लिए, व्यापार एवं उद्योग के लिए भारतीय रेल का बहुत बड़ा महत्व है। यह ठीक है कि सामान ढोने के लिए ट्रकों तथा यात्रियों को गंतव्य तक पहुंचाने के लिए सरकारी और गैर-सरकारी बसें भी महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। हमारे पर्यटक हजारों मीलों की दूरी बसों द्वारा ही तय करते, तीर्थ यात्रा करते, पर्यटन का आनंद लेते हैं। पहाड़ों के शिखरों, लद्दाख, किन्नौर आदि से लेकर सिक्किम के उच्च शिखरों तक और फिर राजस्थान के दुनिया

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। लोकतंत्र में सरकार के प्रति रोष प्रकट करने के लिए हड़ताल-धरने-प्रदर्शनों का सहारा हर व्यक्ति व संगठन को लेने का हक है। लेकिन ऐसी हड़तालें और धरने-प्रदर्शन आम आदमी की रोजमर्रा की जिंंदगी को सीधा प्रभावित करते हैं। ट्रकों की आवाजाही सुचारू रूप से चलना बहुत जरूरी है, क्योंकि इनके जरिए ही हमारी बहुत सी जरूरी चीजों की सप्लाई होती है। खास तौर पर गांवों और उन शहरों में तो यह दिक्कत और भी बढ़ जाती है, जहां तक मालगाडिय़ों का बिल्कुल भी प्रचलन नहीं होता है।

छोटे से हिमाचल की अधिकार प्राप्त करने की होड़ में मुद्दे और मुद्दों की बिसात पर सामाजिक विभाजन की रूपरेखा में उतरते नए पहलवानों का अवतार। गिरिपार की 154 पंचायतों का समाज अब अधिकार के नए क्षेत्र में कदम रखते हुए इस तरह का दसवां समुदाय हो गया जो अब जनजातीय पुकारा जाएगा। इस तरह आधी सदी का संघर्ष सिरमौर के हाटी समुदाय को जनजातीय घोषित होने की खुशी प्रदान कर रहा है। जाहिर तौर पर अधिकारों की फेररिस्त में करीब डेढ़-पौने दो लाख लोगों का समूह गौरवान्वित महसूस कर सकता है क्योंकि अब समाज को संविधान का रक्षा कवच मिलेगा। यह दी

नए साल के पहले ही दिन, सुबह 9.10 बजे, इसरो ने ऐसा उपग्रह प्रक्षेपित किया है, जो चांद-सूरज के बाद अब ब्रह्मांड, ब्लैक होल, न्यूट्रॉन स्टार और अंतरिक्ष की एक्सरे किरणों का अध्ययन करेगा। उपग्रह अंतरिक्ष में भेजना इसरो के लिए कोई नया प्रयोग नहीं है, लेकिन ऐसा करने वाला भारत, अमरीका के बाद, दूसरा देश है, जिसने ब्रह्मांड को खंगालने, उसके अध्ययन और शोध का ऐसा प्रयोग किया है। अमरीका के नासा ने दिसं

चौदह दिसंबर 2023 को दुबई में युनाईटेड नेशन फ्रेमवर्क कान्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज के तहत कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज का 28वां सत्र सम्पन्न हुआ, जिसे कॉप-28 के नाम से भी जाना जाता है। हालांकि कॉप-28 को नतीजों तक पहुंचने में तय सीमा से ज्यादा समय लगा, लेकिन विश्व में इस बाबत खुशी जताई जा रही है कि इस सम्मेलन के बाद दुनिया में मानव जनित ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए बेहतर संभावनाएं होंगी। हालांकि दो सप्ताह तक चलने वाले इस सम्मेलन में बड़ी संख्या में घोषणाएं की गईं, लेकिन इस सम्मेलन के अंतिम समय में एक ऐसी महत्वपूर्ण घोषणा हुई है, जिससे पूरी दुनिया को ग्लोबल वार्मिंग और मौसम परिवर्तन से राहत की एक बड़ी उम्मीद जगी है। तेल लॉबी की तीव्र पैरवी के बावजूद, 2050 तक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस के भीतर सीमित करने के लिए सभी देश जीवाश्म

नए साल की शुभकामनाएं और समारोह एक घिसी-पिटी रवायत है, क्योंकि कुछ भी बदलने के आसार गायब रहते हैं। तनाव, उदासियों, नाकामियों, युद्ध जैसी विभीषिकाओं, संहार, सत्ताओं के लालच और स्वार्थ के माहौल में आम आदमी का कुछ भी संवरता हुआ दिखाई नहीं देता। एहसास तक नहीं होता। बस अस्तित्व जिंदा है, यही गनीमत है और नियति की मेहरबानी भी है। यह यथार्थ तब महसूस होता है, जब आम आदमी होश में होता है, अलबत्ता बाजार की ताकतों ने नए साल के रूप में उसे भ्रमित कर रखा है। आम आदमी इन्हीं संभावनाओं में बेहोश रहता है कि नया साल आया है, तो उसकी जिंदगी भी ‘नई’ होगी! बसंत की बहारें आएंगी और नया सफर सुखद होगा! हम नैराश्य और नकार की अवस्था में