विचार

11 जनवरी से 17 जनवरी तक राष्ट्रीय सडक़ सुरक्षा सप्ताह मनाया जा रहा है। लोगों को सडक़ दुर्घटनाओं से बचने के प्रति जागरूक करने के लिए वर्ष 1989 से राष्ट्रीय सडक़ सुरक्षा सप्ताह मनाया जाता है।

कहानी के प्रभाव क्षेत्र में उभरा हिमाचली सृजन, अब अपनी प्रासंगिकता और पुरुषार्थ के साथ परिवेश का प्रतिनिधित्व भी कर रहा है। गद्य साहित्य के गंतव्य को छूते संदर्भों में हिमाचल के घटनाक्रम, जीवन शैली, सामाजिक विडंबनाओं, चीखते पहाड़ों का दर्द, विस्थापन की पीड़ा और आर्थिक अपराधों को समेटती कहानी की कथावस्तु, चरित्र चित्रण, भाषा शैली व उद्देश्यों की समीक्षा करती यह शृंखला। कहानी का यह संसार कल्पना

यही कारण हैं कि संसद बहस के लिए निरर्थक हो चुकी है। इतिहास बताता है कि हमारी संसद दशकों से बिना बहस के कानून पारित करती रही है। कुछ उदाहरणों पर गौर करें : 1990 में चंद्रशेखर सरकार ने दो घंटे से भी कम समय में 18 विधेयक पारित किए; 2001 में 32 घंटों में 33 बिल पारित किए गए; 2007 में लोकसभा ने 15 मिनट में तीन विधेयक पारित किए; 2021 में 20 विधेयक बिना किसी बहस के पारित हुए। स्वाभाविक है कि लोकसभा की बैठकों में भी कमी आई है। यह 1952-70 में प्रत्येक वर्ष 121 दिनों के लिए बैठती थी, लेकिन अब औसत केवल 68 दिन है...

पहाड़ के सीने पर सजे ये आलातरीन सैन्य पदक मैदाने जंग में वीरभूमि के सैन्य पराक्रम की तस्दीक करते हैं, मगर इसके बावजूद शौर्य का धरातल सेना में अपने नाम की शिनाख्त ‘हिमाचल रेजिमेंट’ को एक मुद्दत से मोहताज है...

अयोध्या में श्रीराम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह का आमंत्रण अस्वीकार कर कांग्रेस ने धर्म को निजी मामला माना है, लेकिन उसकी आरोपिया दलीलें भी हैं कि ‘अधूरे मंदिर’ का उद्घाटन शास्त्र सम्मत नहीं है। यह आरएसएस-भाजपा का कार्यक्रम है और उन्होंने ‘राजनीतिक लाभ’ के लिए ऐसा किया है। कांग्रेस ने शंकराचार्यों द्वारा भी आमंत्रण अस्वीकार करने की आड़ ली है, जो अद्र्धसत्य है। शंकराचार्य विजयेन्द्र सरस्वती की टीम प्राण-प्रतिष्ठा की प्रक्रिया का एक हिस्सा है। इसके अलावा, दो शंकराचार्यों ने अपनी स्वीकृति भेज दी है कि वे 22 जनवरी के पावन उत्स

पर्यटनकी खिड़कियां पूछ रहीं, वह सामने क्यों टांग दी उलटी तस्वीर। ये जन्नत की निगाहों में क्यों फंस गए तिनके, बहारों के आंचल में तो ऐसा कुछ न था। हिमाचल यूं तो पर्यटन राज्य की तासीर में फलता-फूलता दिखाई देता है, लेकिन इन आंकड़ों में खुशहाली नहीं। शीतकालीन पर्यटन की अमावस्या इस बार पर्यटन के

मैं शुरू में ही एक दो बातें क्लियर कर देना चाहता हूं। मैं पुलिस के खिलाफ बिल्कुल नहीं सुनता। एक शब्द नहीं सुनता। अपनी पत्नी के ताने तो सुन लेता हूं, लेकिन पुलिस के खिलाफ नहीं सुनता। कोई पुलिस के खिलाफ बोल रहा हो तो मैं दोनों कानों में अपनी एक-एक उंगली डाल लेता हूं और फिर उंगली को घुमाता रहता हूं। इससे दो बातें होती हैं। एक तो कानों की मैल साफ हो जाती है और दूसरा पुलिस की बुराई सुनने से बच जाता हूं। एक दिन ज

लोहड़ी का पर्व भाईचारे की भावना के साथ मनाया जाना चाहिए। इसके अगले दिन मकर संक्रांति का पर्व होता है, जिस दिन तिल, गुड़ व चावल आदि का दान करना तथा तीर्थों पर स्नान करना पुण्य का काम माना जाता है। लोग ठंड को दूर करने के लिए तिल व गुड़ से बने लड्डू खाते हैं औ

उच्चतम न्यायालय की बैंच इस बात पर विचार करेगी कि क्या यह विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक संस्थान है या नहीं... अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय एक बार फिर चर्चा में आ गया है। विश्वविद्यालय की पहचान और इसकी वैधानिक स्थिति को लेकर इस विश्वविद्यालय की चर्चा बार-बार होती ही रहती है। दरअसल यह विश्वविद्यालय अपने जन्म काल से ही चर्चा में है। 1857 की आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों ने अनेक सबक सीखे थे और उसके अनुरूप भारत को लेकर अपनी नीति और रणनीति दोनों को ही बदला। इस लड़ाई में भारत के देसी मुसलमान अंग्रेजों के विपक्ष में खड़े थे। इसलिए अंग्रेजों को ऐसे मुसलमानों की तलाश थी, जो विदेशी मूल के हों और भारत के देसी मुसलमानों को अपने पिछलग्गू बना कर उनका नेतृत्व संभाल सकें। इसके लिए अंग्रेज हुक्मरानों ने अनेक उपाय किए जिनमें से अलीगढ़ में एक शिक्षा संस्थान की स्थापना भी