वैचारिक लेख

धीरे-धीरे पुतले और इनसान के बीच अंतर खत्म होते-होते, आज स्थिति यहां तक पहुंच गई कि मुफ्त राशन की लाइन में, चुनावी पार्टियों के टिकटार्थियों में और देशभक्ति के नाकों पर भी पुतले पहुंच गए। अब हर जगह एक-दूसरे पर शक यह है कि कहीं पुतलों के बीच कोई बुद्धिजीवी इनसान तो नहीं। उधर लोगों के बीच पुतले बनाने का हुनर परवान चढ़ रहा है, ताकि जिन्हें घोषित पुतला बना दिया जाए, इल्जाम उन्हीं के ऊपर जमाने के आमादा हो जाएं। एक गलती से रावण आज तक पुतला बना घूम रहा है, लेकिन आज के इनसान को यह कबूल नहीं कि उसे गलती का पुतला कहा जाए।

सवाल यही उठता है कि क्षेत्रीय दलों के नेताओं ने अपने राज्य और देश के सामने कभी भ्रष्टाचार से निपटने का खाका नहीं रखा। यह निश्चित है कि विपक्षी दलों का आगामी लोकसभा चुनाव में केंद्र में सत्ता पाने का ख्वाब तब तक शायद ही पूरा हो, जब तक भ्रष्टाचार सहित अन्य संवेदनशील मुद्दों पर नीतियां स्पष्ट न हों...

अंतरराष्ट्रीय विकलांग दिवस पूरे विश्व में हर वर्ष 3 दिसंबर को मनाया जाता है। यह दिन समाज और विकास के सभी क्षेत्रों में, विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों, कल्याण को बढ़ावा देने और राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन के हर पहलू में विकलांग व्यक्तियों की स्थिति के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है। हर वर्ष नए थीम के साथ इस दिवस को मनाया जाता है तथा इसके आधार पर विभिन्न कार्यक्रम और नीतियों को

देखिए जी, मुल्क मजे में है। जैसे हुक्मरान मजे में हैं। बाबा लोग मजे में हैं। धर्माचार्य मजे में हैं। कोई फिक्र फाका नहीं। एकदम से मस्त। मजा पूरे शबाब पर। मुल्क दौड़ रहा है नाक की सीध में सरपट। बीच में कोई अवरोध नहीं। कोई ट्रैफिक जाम नहीं। कोई रैली, धरना, प्रदर्शन नहीं। सडक़ में कोई खड्डा या गड्डा नहीं। कोई पेड़ नहीं। कोई झाड़ी नहीं। रॉन्ग साइड में कोई गाड़ी नहीं। सडक़ चकाचक। एकदम से क्लियर रास्ता। मुल्क को और क्या चाहिए! मुल्क लगातार आगे बढ़ रहा है। नए-नए रिकॉर्ड बना रहा है और अपने ही रिकॉर्ड तोड़ रहा है। कोई ऐसी फील्ड नहीं है जिसमें मुल्क ने

योग के नियमों का पालन करने के बाद अगर यौगिक क्रियाओं को किया जाता है तो मानव में शारीरिक व मानसिक स्तर पर आश्चर्यजनक रूप से अलौकिकता का सुधार होता है। आज आधुनिकता की इस अंधी दौड़ में इनसान को अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देना जरूरी हो जाता है। आज जब मनुष्य के पास हर सुख सुविधा आसानी से उपलब्ध है, मगर समय का अभाव है, ऐसे में फिटनेस को बनाए रखने की दिक्कत सबके सामने है...

भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक सैयद गुलाम नबी फाई ने अमेरिका में कश्मीर अमेरिकी परिषद बना रखी थी। वह भारत विरोधी प्रचार करता है...

दफ्तर जाने के लिए मुझे बहुत सी तैयारियां करनी पड़ती हैं। आखिर दफ्तर जो जा रहा हूं। दफ्तर जाने का मतलब यह तो है नहीं कि साबुन से नहाओ भी मत या रोजाना शेव भी मत बनाओ। दफ्तर में मेरे कई साथी हैं। वे इसे वेस्टेज मानते हैं। उनका तर्क यह है कि दफ्तर कोई निजी कार्य या सगे सम्बन्धी का काम तो है नहीं, जो रोज एक रुपए का ब्लेड खराब करो, साबुन खराब करो, चेहरे को चमकाने के लिए क्रीम लगाओ, बाल काले करो अथवा मूंछों की करीने से कटाई-छंटाई करो। जबकि मेरा मानना है कि दफ्तर से वेतन मिलता है, घर चलता है और वहां महिलाएं काम करती हैं,

लगता है आज जिंदगी ठेके पर चली गई है। लेखन से कलाकृतियों तक का सृजन ठेके पर होता है। जिंदगी से प्यार खत्म करवाने का ठेका पहले कुछ लोगों ने ले रखा था। इस पर न जाने कितनी दर्दनाक फिल्में लिखी गईं, न जाने कितनी प्रेम कहानियां बनीं, जिनके प्रेम त्रिकोण में तीसरा कोना खलनायक

इनमें से बहुत सी कंपनियां शोध और समाज सेवा पर नियमित रूप से तथा बड़े खर्च करती हैं। इन कंपनियों के सहयोग से बहुत से क्रांतिकारी आविष्कार हुए हैं। सच तो यह है कि इन कंपनियों के बिना वे आविष्कार संभव ही न हुए होते। आर्थिक शिक्षा हमारी खुशहाली की कुंजी है। आर्थिक रूप से शिक्षित व्यक्ति भ्रष्ट हुए बिना भी, किसी दूसरे व्यक्ति का नुकसान किए बिना भी, कानूनी और वैध तरीकों से तेजी से अमीर बन सकता है। वस्तुत: आॢथक शिक्षा के बिना अमीर बनना तो शायद संभव है, पर अमीर बने रहना संभव नहीं है। लक्ष्मी और सरस्वती में यहां कोई विरोध नहीं है...