वैचारिक लेख

डा. जयंतीलाल भंडारी विख्यात अर्थशास्त्री पिछले दिनों 12 अक्तूबर को चीन के प्रमुख अखबार ग्लोबल टाइम्स ने विशेष आलेख में कहा है कि इस समय जब चीन से कंपनियों के पलायन करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है, तब भारत मेक इन इंडिया को हकीकत बना सकता है। साथ ही भारत दुनिया में मैन्युफेक्चरिंग हब

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री वरिष्ठ स्तंभकार जम्मू-कश्मीर की नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष मोहम्मद शफी कुरैशी 1963 में ही कह रहे थे कि अनुच्छेद 370 को हटाए जाने से इस राज्य में एक प्रभावशाली लोकतंत्रात्मक विरोधी दल के निर्माण में सहायता मिलेगी। अक्तूबर 1963 को नेशनल कॉन्फ्रेंस का एक प्रतिनिधि मंडल तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल

अशोक पुरोहित स्वतंत्र लेखक देश में आमंत्रित पूंजी निवेश कहां से कहां तक देश को पहुंचा देगा इसका परिणाम समय में ही निहित है। आजादी के उपरांत तत्कालीन शासनकर्ताओं ने सुविचरित आर्थिक नीति के अधीन एक सुदृढ़ एवं संतुलित आर्थिक प्रक्रिया का संकल्प संजोया तथा इस हेतु मिश्रित अर्थ व्यवस्था का मार्ग अपनाया। संतुलित औद्योगिकरण

राजेंद्र पालमपुरी लेखक, मनाली से हैं अगर बात आम जनमानस की हो रही है तो याद आते हैं वह दिन जब बाजार चलती बार घर के सदस्य अकसर आवाज दिया करते थे – जरा देना भई थैला, कुछ सामान-वामान लेते आएंगे और यह हमारे हर घर की बात थी। यही नहीं मैंने देखा है अपनी

कर्नल मनीष धीमान स्वतंत्र लेखक उत्तर भारत में बड़े ही धूमधाम से त्योहार की तरह मनाए जाने वाले सुहागिन व्रत की सेना में कुछ अलग अहमियत है। मेरे करीब अढाई दशक के सेवाकाल के दौरान मुझे हमारे देश की अलग-अलग वेशभूषा, भाषा, धर्म, जाति,  रीति-रिवाज एवं संस्कृति के बारे में बारीकी से जानने का मौका

प्रो. एनके सिंह अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार   हाल ही में हिमाचल के अंबोटा के शिव बाड़ी मंदिर मामले में सरकार हिंदुओं के धर्म के मामलों में अपनी खुद की जागीर बनाने की राह पर चल रही है। सर्वोच्च न्यायालय ने पुजारी को हटाने के खिलाफ अपील को हटा दिया और इसे जारी रखने के लिए

भूपिंदर सिंह राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक   इसमें कोई संदेह नहीं कि ओलंपिक खेलों की लोकप्रियता बढ़ने के साथ-साथ खेलों में राष्ट्रीयता की भावना में बढ़ोतरी हुई है। आज अधिक से अधिक देश ओलांपिक खेलों में भाग ले रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप काफी कठिन खेल प्रतियोगिताएं हो गई हैं। इसके लिए विकसित देशों ने भविष्य के

पूरन सरमा स्वतंत्र लेखक क्या आप कभी देश के किसी हाउसिंग बोर्ड कार्यालय में गए हैं? यदि नहीं गए हैं तो जरूर जाइए। वहां हर रोज पीडि़त आत्माओं का कुंभ लगता है, जो भांति-भांति की कथाएं लेकर उपस्थित होती हैं। आदमी कैसे बूढ़ा होता है, इसका जीवंत उदाहरण है, हाउसिंग बोर्ड। हाउसिंग बोर्ड मैं भी

पीके खुराना राजनीतिक रणनीतिकार आज हम सचमुच प्रकाश से वंचित हैं और ऐसा हमने खुद जानबूझ कर किया है। हमारे भवन ऐसे बनने लगे हैं जहां सूर्य का सीधा प्रकाश नहीं आता, आता भी है तो उसे हम मोटे-मोटे परदे लगाकर बाहर रोक देते हैं और कृत्रिम प्रकाश में जीवन गुजारते हैं। घर से बाहर