वैचारिक लेख

सुरेश सेठ, साहित्यकार हमें आजकल देश के भाग्य विधाता हर समय उस कोशिश में लगे नजर आते हैं, हमें आश्वस्त करते हुए कि उनके भगीरथ प्रयास से यह देश बदल गया है। थोड़ा बदला है, थोड़ा और बदलने की जरूरत है। इसलिए इस देश के हर आम और खास आदमी को यह बताया जा रहा है

डा. वरिंदर भाटिया लेखक, पूर्व कालेज प्रिंसिपल हैं हाल ही में मशहूर वाणिज्यिक एजेंसी मूडीज ने भारतीय बैंकिंग सिस्टम को सबसे कमजोर करार देते हुए चेतावनी देते हुए कहा है कि भारतीय बैंकिंग सिस्टम दुनिया की सबसे असुरक्षित व्यवस्थाओं में से एक है। एशिया-पैसिफिक की 13 अर्थव्यवस्थाओं में एजेंसी ने भारत की बैंकिंग प्रणाली को

कपिल चटर्जी लेखक, मंडी से हैं आज शहरी चिन्हित पर्यटन स्थलों पर पर्यटकों का जमावड़ा निरंतर बढ़ रहा है, जो केवल कुछ ही क्षेत्रों तक सिमट कर रह गया है। ईको टूरिज्म के तहत प्रदेश के अनछुए, रमणीक स्थलों को चिन्हित कर जो अपने आप में एक धार्मिक व ऐतिहासिक महत्त्व को संजोए प्रकृति की

अशोक गौतम साहित्यकार स्वर्ग से लेकर नरक तक सेल की धूम मची हुई है। आटे से लकेर डाटे तक की सेल महासेल चरम पर है। सेल का जादू हर जीव के दिमाग चढ़ खौल रहा है। सेल के बाजार में भीड़ ऐसी कि अभी नहीं तो फिर कभी नहीं। गली मोहल्ले वाले तो गली मोहल्ले

भरत झुनझुनवाला आर्थिक विश्लेषक कंपनियों द्वारा अदा किए जाने वाले आयकर को घटाकर लगभग 33 प्रतिशत कर दिया है। इस उलटफेर से स्पष्ट होता है कि आयकर की दर का आर्थिक विकास पर प्रभाव असमंजस में है। यदि आय कर बढ़ाया जाता है तो इसका प्रभाव सकारात्मक भी पड़ सकता है और नकारात्मक भी। यदि

अजय पाराशर लेखक, धर्मशाला से हैं यह तो सभी जानते हैं कि हमारे देश में भू-दान आंदोलन की नींव आचार्य बिनोवा भावे ने रखी थी, लेकिन भू-डॉन आंदोलन के प्रण्ेता को कोई नहीं जानता। वजह जमीनों पर कब्जों का इतिहास उतना ही पुराना है, जितनी हमारी सभ्यता। तारीख गवाह है कि ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’

जगदीश बाली स्वत्रंत लेखक अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में आरंभ में समाचार पत्र व रेडियो ने अहम भूमिका निभाई। फिर टीवी ने दस्तक दी। अब आ गया सोशल मीडिया जो सब पर छा गया है। इनमें ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्सऐप मुख्य हैं। सोशल मीडिया ने आम लोगों को अपनी बात को अपने अंदाज में कहने

अनुज कुमार आचार्य लेखक, बैजनाथ  से हैं बरसात और बर्फबारी के सीजन में हर साल प्रदेश की सड़कों को नुकसान पहुंचता है। सरकार अपने स्तर पर सालाना लगभग 500 करोड़ रुपए के बजटीय प्रावधान से इनका रख-रखाव करती है। जबकि केंद्र से राज्य के नेशनल हाई-वे के लिए  मात्र 100 करोड़ रुपए की रकम मिलती

डा. जयंतीलाल भंडारी विख्यात अर्थशास्त्री इस समय दुनिया के साथ-साथ देश का भी औद्योगिक परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। ऐसे बदलते परिदृश्य में औद्योगिक विकास की जरूरतें भी बदल रही हैं। इस समय उद्योग-कारोबार में रोबोट, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम बुद्धिमता और 3डी प्रिंटिंग सहित नई-नई तकनीकों का उपयोग बढ़ता जा रहा है। ऐसे