भरत झुनझुनवाला

डा. भरत झुनझुनवाला लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं हमने बगल में दीवारें बनाकर नदी को यू शेप में बदल दिया है। पानी बढ़ने पर नदी का क्रॉस सेक्शन अब बढ़ता नहीं है। खड़ी दीवारों के बीच में ही नदी को बहना पड़ता है। अतः नदी इन दीवारों को शीघ्र ही पार कर लेती है

डा. भरत झुनझुनवाला लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में दायर की गई एक याचिका में केरल सरकार ने कहा है कि पर्यावरण मंत्रालय द्वारा इस संस्तुति के अनुसार पर्यावरणीय प्रवाह छोडऩे की शर्त लगाई जा रही है। इसके सामने चार साल बीत जाने के बाद भी वर्तमान में चल रहे जल

डा. भरत झुनझुनवाला लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं रुपए के मूल्य गिरने का तीसरा कारण कच्चे ईंधन, तेल के बढ़ते दाम और बढ़ती मांग है। सरकार ने मेक इन इंडिया को प्रोत्साहन और देश में मेन्युफैक्चरिंग के विस्तार का प्रयास किया है। मेन्युफैक्चरिंग में ऊर्जा का उपयोग ज्यादा होता है। मेन्युफैक्चरिंग बढ़ाने के साथ-साथ

डा. भरत झुनझुनवाला लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं कुछ सेवाएं ऐसी हैं, जो कम्प्यूटर द्वारा नहीं की जा सकती हैं, जैसे माल की बिक्री करने के लिए सेल्समैन, बीमारों की सेवा करने के लिए नर्स, बच्चों को शिक्षा देने के लिए टीचर, संगीत सिखाने के लिए संगीतज्ञ आदि। इस प्रकार की सेवाएं, जो मनुष्य

डा. भरत झुनझुनवाला लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं पाकिस्तान सद्भाव एवं मित्रता बनाने के स्थान पर हमारे देश में आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा है, लेकिन पाकिस्तान ने छोटी आपत्तियां दर्ज कराकर हमारा ध्यान 80 प्रतिशत पानी के आवंटन से भटका दिया है। पाकिस्तान ने हमें बेवकूफ बना दिया है। भारत को चाहिए

डा. भरत झुनझुनवाला लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं अतः हमें कोई युक्ति निकालकर भारत को भी बैल्ट रोड इनिशिएटिव से जोड़ना चाहिए, जिससे हमारा माल भी यूरोप तथा अफ्रीका उतनी ही आसानी से पहुंच सके, जितना कि चीन का माल पहुंच रहा है। एक संभावना यह है कि भारत चीन पर दबाव डाले कि

डा. भरत झुनझुनवाला लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं बाजार में श्रमिक के सच्चे वेतन में वृद्धि हासिल करने के लिए विशेष कदमों की जरूरत है। आर्थिक विकास से सहज ही सच्चे वेतन में वृद्धि नहीं होती है। आर्थिक विकास और श्रमिक के वेतन का जो अलगाव है उसका मूल कारण है कि हम अधिकाधिक

डा. भरत झुनझुनवाला लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं बैंकों के राष्ट्रीयकरण का उद्देश्य आज उलट  चुका है। बैंकों का राष्ट्रीयकरण इसलिए किया गया था कि सामान्य नागरिक को बैंक द्वारा अधिक मात्रा में ऋण दिए जाएंगे, जिससे उसकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो, लेकिन आज ठीक इसके उलट हो रहा है। आम आदमी पर

डा. भरत झुनझुनवाला लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं इस समस्या का समाधान यह हो सकता है कि उच्च शिक्षा को सरकार द्वारा अवश्य अनुदान दिया जाए, लेकिन यह अनुदान केवल यूनिवर्सिटी पर सरकार के स्वामित्व के आधार पर न दिया जाए, बल्कि शिक्षण संस्था के कार्य की गुणवत्ता के आधार पर दिया जाए। जैसे