भरत झुनझुनवाला

डा. भरत झुनझुनवाला लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, चीन और रूस  अमरीका के इस एकतरफा निर्णय से सहमत नहीं हैं। उनका मानना है कि ईरान पर दोबारा प्रतिबंध लगाना उचित नहीं होगा। उनकी इच्छा है कि अमरीका द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के बावजूद ईरान से तेल को खरीदा जा सके। इसके

डा. भरत झुनझुनवाला लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं निष्कर्ष यह निकलता है कि असंगठित श्रमिकों के संगठन तब ही सफल होंगे, जब वे माल के मूल्य का निर्धारण कर सकें। माल का मूल्य बढ़ाने के लिए सस्ते आयातों से संरक्षण जरूरी है। अतः खुले विश्व बाजार के साथ-साथ असंगठित श्रमिकों का हित हासिल नहीं

डा. भरत झुनझुनवाला लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं वर्तमान में जो मनरेगा में कार्य कराए जा रहे हैं, उनसे किसान को दोहरी चपत पड़ रही है। एक तरफ खेत मजदूर की दिहाड़ी बढ़ रही है, तो दूसरी तरफ मनरेगा के अंतर्गत व्यर्थ के कार्य कराए जा रहे हैं। जैसे अनुपयुक्त स्थानों पर चेकडैम बनाए

डा. भरत झुनझुनवाला लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं देश की अर्थव्यवस्था की ग्रोथ रेट सपाट है। इसलिए बुनियादी संरचना में निवेश भी अर्थव्यवस्था के चक्के को घुमा नहीं पा रहा है। इस परिस्थिति में देश की आर्थिक विकास दर को पुनः गति पर लाने के लिए सरकार को तत्काल जीएसटी का सरलीकरण करना चाहिए,

डा. भरत झुनझुनवाला लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं एक परिस्थिति यह है कि वह संन्यासी नेता समाज के लिए सही दिशा में कार्य करे। ऐसे में समाज को दोहरा लाभ होगा। संन्यासी होने के कारण वह निर्लिप्त भाव से कार्य करेगा और सही दिशा में होने के कारण वह सही कार्य करेगा, लेकिन यदि

डा. भरत झुनझुनवाला लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं इस समस्या का उपाय यह है कि वर्तमान में केंद्र सरकार द्वारा जो फर्टिलाइजर, खाद्य सबसिडी, सस्ते लोन एवं मनरेगा आदि के माध्यम से किसानों को सबसिडी दी जा रही है, उस रकम को सीधे किसानों के खाते में डाल दिया जाए। इन मदों पर केंद्र

डा. भरत झुनझुनवाला लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं यह बात सही है कि भारत और चीन के निर्यात प्रभावित होंगे, लेकिन भारत के निर्यात कम और आयात ज्यादा हैं। अतः निर्यातों में जो गिरावट होगी, उससे ज्यादा आयातों में गिरावट आएगी। जैसे अमरीका ने भारत से निर्यातित स्टील पर आयात कर बढ़ा दिए, उससे

डा. भरत झुनझुनवाला लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणी यहां यह भी बताना जरूरी है कि सरकार द्वारा पूर्व में हर तीसरे महीने रोजगार संबंधी एक रपट सार्वजनिक की जाती थी। पिछली दो तिमाहियों से इस रपट को सार्वजनिक नहीं किया गया है। प्रश्न है कि यदि रोजगार वास्तव में बढ़ ही रहे हैं, तो सरकार

डा. भरत झुनझुनवाला लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणी लोग बेरोजगारी भत्ते को लेकर मस्त हैं। उनकी श्रम करने की चाहत समाप्त हो गई है और समाज कुंठित हो रहा है। यदि समाज का एक बड़ा वर्ग इस प्रकार निष्क्रिय हो जाएगा, तो समाज के स्थिर रहने में भारी संदेह है। इन कारणों से बढ़ती असमानता