आस्था

ऐसा हो ही नहीं सकता कि पेरेंट्स को बच्चों पर गुस्सा न आए। बच्चे बहुत शैतान होते हैं और इस वजह से उनसे कई बार गलतियां हो जाती हैं। ऐसे में अकसर मां-बाप का बच्चों पर हाथ उठ जाता है। कुछ पेरेंट्स तो बच्चों को सबक सिखाने के लिए मारपीट को ही सही रास्ता समझते

पुरातन काल में एक अपराजित हेय दैत्य कृतवीर्य के आतंक से दसों दिशाओं में हाहाकार मच गया था। वह महाप्रतापी और वरदानी था। देवता और मनुष्यों में से कोई उससे लोहा ले सकने की स्थिति में नहीं था। सभी असहाय बने जहां-तहां अपनी जान बचाते फिरते थे। उपाय ब्रह्माजी ने सोचा। भगवान शंकर को एक

अगर आप जागरूकता के साथ शामिल हों तो ये बहुत खुशी से भरा हुआ रहेगा। आज हम वैज्ञानिक तरीके से यह साबित कर सकते हैं कि आपके शरीर का हर एक परमाणु सारे ब्रह्मांड के साथ बात करता है। आप उस अद्भुत घटना से मुंह फेरने की कोशिश कर रहे हैं जो आपके जीवन का

6 सितंबर रविवार, भाद्रपद, कृष्णपक्ष, चतुर्थी 7 सितंबर सोमवार, भाद्रपद, कृष्णपक्ष, पंचमी 8 सितंबर मंगलवार, भाद्रपद, कृष्णपक्ष, षष्ठी 9 सितंबर बुधवार, भाद्रपद, कृष्णपक्ष, सप्तमी 10 सितंबर बृहस्पतिवार, भाद्रपद, कृष्णपक्ष, अष्टमी, कालाष्टमी 11 सितंबर शुक्रवार, भाद्रपद, कृष्णपक्ष, नवमी, मातृ नवमी 12 सितंबर शनिवार, भाद्रपद, कृष्णपक्ष, दशमी

माइग्रेन आजकल एक आम बीमारी है। जिसकी गिरफ्त में लोग आसानी से आ जाते हैं। माइग्रेन से पहले कई संकेत मिलते हैं, जिनसे समझा जा सकता है कि इस बीमारी का प्रारंभिक चरण शुरू हो चुका है। जो कि आगे चलकर भयंकर सिर दर्द में तबदील होने वाला है। माइग्रेन के संकेतों को कैसे पहचानें,

मां दुर्गा की कहानी के पीछे यह संदेश है कि कर्म की अपनी जगह होती है। केवल अकेले संकल्प के होने से काम नहीं होता। देखिए भगवान ने हमें हाथ और पैर दिए हैं ताकि हम काम कर सकें। देवी माता के इतने सारे हाथ क्यों हैं। इसका तात्पर्य यह है कि भगवान भी काम

गतांक से आगे… माता जी के नामों से संकल्प पूर्वक यह अनुष्ठान प्रारंभ हुआ। ब्रह्मचारी कृष्णलाल महाराज इस अनुष्ठान के पुरोहित बने। तंत्रधारक का आसन ग्रहण किया। इस अनुष्ठान की समाप्ति पर पशु बलि न देकर मिष्ठान का नैवेद्य प्रस्तुत किया गया। सैकड़ों लोगों को भोजन कराया गया, अनेक ब्राह्मणों को भोजन के लिए आमंत्रित

भगवान निम्नतम चित्तदशा के लिए भी कह रहे हैं कि इस दशा में भी, इस अंधकार में पड़ा हुआ भी यदि कोई अनन्य भाव से प्रभु का स्मरण करता है, तो ईश्वरीय ज्ञान की प्रकाश रूपी किरण इस तक भी पहुंच जाती है और यह मुक्त हो जाता है। अब वैश्य दूसरी कोटि है। वैश्य

ठीक पूछा है। क्योंकि हम तो हर बात के लिए पूछेंगे कि किसलिए? कोई कारण हो पाने के लिए तो ठीक है, कुछ दिखाई पड़े कि धन मिलेगा, यश मिलेगा, गौरव मिलेगा, कुछ मिलेगा, तो फिर हम कुछ कोशिश करें। क्योंकि जीवन में हम कोई भी काम तभी करते हैं जब कुछ मिलने को हो।