प्रतिबिम्ब

कुलदीप शर्मा, मो.-9882011141 यह विषय ही किसी विमर्श से ज्यादा हमारे समय की मूल्यगत मान्यताओं की स्टेटमेंट जैसा लगता है। किसी भी सृजन की प्रक्रिया में अनिवार्य रूप से एक दीर्घकालिक अपनत्व और स्वामित्व की भावना रहती है। यह स्वामित्व किसी वस्तु पर कब्जा करके रखने जैसा नहीं है, बल्कि सृजन में लोकसंग्रह और लोककल्याण की

कविता एक सांस्कृतिक व सामाजिक प्रक्रिया है। इस अर्थ में कि कवि जाने-अनजाने, अपने हृदय में संचित, स्थिति, स्थान और समय की क्रिया-प्रतिक्रिया स्वरूप प्राप्त भाव-संवेदनाओं के साथ-साथ जीवन मूल्य भी प्रकट कर रहा होता है। और इस अर्थ में भी कि प्रतिभा व परंपरा के बोध से परिष्कृत भावों को अपनी सोच के धरातल

शांता कुमार को पढऩे के लिए उनके सृजन संसार में डूबना कितना जरूरी रहा होगा, यह डा. हेमराज कौशिक की ताजा पुस्तक ‘साहित्य सेवी शांता कुमार के पन्नों पर बिखरा उनका कृतज्ञ अनुराग बताता है। किताब एक तरह से लेखक की अपनी कसौटियों में साहित्यिक परिमार्जन भी है, जहां शोधार्थी या समीक्षक अपनी विधाओं में

पवनेंद्र पवन, मो.-9418252675 अरब में बादशाहों की तारीफ में कसीदे कहे जाते थे। कसीदे के पहले हिस्से को तशबीब (शबाव की बातें करना) कहा जाता था। इस हिस्से में सौंदर्य और दिलफरेबी का वर्णन रहता था। इसी कसीदे की कोख से गज़़ल का जन्म हुआ। इस विधा का नाम ‘गज़़ल भी शायद इसीलिए रखा गया

कविता में वर्तमान में दो किस्म का संप्रेषण काम करता है, एक मौखिक और दूसरा लिखित। कविता जब मंच पर बोली जाती है तो यह मौखिक संप्रेषण है। अभिव्यक्ति की परिपक्वता कविता को अच्छी, बुरी या प्रभावी बनाती है। दूसरे शब्दों में कहूं तो बोलने वाले के लहजे, उसकी बॉडी लैंग्वेज, शब्दों के उच्चारण से

कविता एक सांस्कृतिक व सामाजिक प्रक्रिया है। इस अर्थ में कि कवि जाने-अनजाने, अपने हृदय में संचित, स्थिति, स्थान और समय की क्रिया-प्रतिक्रिया स्वरूप प्राप्त भाव-संवेदनाओं के साथ-साथ जीवन मूल्य भी प्रकट कर रहा होता है। और इस अर्थ में भी कि प्रतिभा व परंपरा के बोध से परिष्कृत भावों को अपनी सोच के धरातल

बल्लभ डोभाल, मो.-8826908116 यादों का जीवन है। कहते हैं कि जब कुछ नहीं रहता, तब यादें शेष रह जाती हैं। बचपन से लेकर जवानी और बुढ़ापे की यादें आखिरी दम तक आदमी का साथ देती हैं। मन को हरा-भरा रखती हैं। कितनी यादें…पेड़-पौधे, पशु-पक्षियों से लेकर, मिट्टी कंकड़-पत्थर तक, आदमी का जुडऩा गांव में ही

रचना प्रकाशन का जनवरी-जून 2021 का अंक भी धमाकेदार रहा। हिमाचल का हिंदी उपन्यास विशेषांक इस बार रचना ने पेश किया है। जाहिर है पाठकों को कई भूले-बिसरे किस्से भी ताजा होंगे। पत्रिका रचना के संपादक सुशील कुमार फुल्ल इस अंक की शुरुआत यशपाल की बात से यूं करते हैं कि उपन्यास में आंचलिकता क्या

आत्मारंजन, मो.-9418450763 इस कविता परिसंवाद के विषयों में से-‘कवि हृदय का हकीकत से संघर्ष विषय ने कुछ अलग से आकर्षित किया। यह इसलिए भी कि यह अन्य विषयों से अलहदा कविता की रचना प्रक्रिया में कवि के आत्मसंघर्ष को संकेतित करता है, जिस पर प्राय: कम बात होती है। असल में अभिव्यक्ति की तमाम विधाओं