प्रतिबिम्ब

गंगाराम राजी पुस्तकें हमारे ज्ञान का भंडार समृद्ध करने, सच्चा मार्गदर्शन करने में सक्षम तथा भविष्य को आंकने वाली सच्ची मित्र होती हैं। जहां मनुष्य क्षणभंगुर है, वहीं पुस्तकों में मनुष्य के श्रेष्ठ विचार, ज्ञान, उपदेश, संस्कृति, सभ्यता तथा मानवीय मूल्य हमेशा जीवित रहते हैं। यह विचार स्थायी, एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के द्वारा संचारित

राजेंद्र राजन साहित्य का रिश्ता अभिरुचि से है। साहित्य में दिलचस्पी नहीं तो आप उसे जबरन क्यों पढ़ें? भारतेंदु ने जब खड़ी बोली यानी आज की हिंदी में साहित्य की रचना आरंभ की तो वह चमत्कार से कम नहीं था। उसके पूर्व साहित्य लोकभाषाओं यानी ब्रज, अवधी, मैथिली या भोजपुरी में उपलब्ध था। इस चमत्कार ने ‘चंद्रकांता

धूप का टुकड़ा दुबक कर भीतर ढुका एक खरगोश बैठ रहा बिना झपके आंखें मदहोश सरक गया इक युग दशकों का भूला भटका ढरक गया ढूंढने एक आगोश आवाज मूक हो गई/गुम हो गए शब्द थम गई हवा/फैला वातास थिर हुआ बेहोश। आओ जरा उन जख्मों को खंगालें टीस जिनकी टीसती रही थी वर्ष भर

देश की साहित्यिक पत्रिकाओं तक हिमाचल का सफर अब दिखाई देने लगा है। कुछ कहानियां अपने संदर्भों की बानगी में प्रस्तुत हो रही हैं, तो प्रकाशित पुस्तकें समीक्षा का विषय बन रही हैं। नया ज्ञानोदय में ‘विमल राय पथ’ पर राजेंद्र राजन के हस्ताक्षर हैं, तो कथादेश में सुदर्शन वशिष्ठ अपनी कहानी ‘जंगल का गीत’

प्रकाशक और पुस्तक के गठजोड़ में लेखक और पाठक दोनों आते हैं। लेखक के लिए पुस्तक एक कृति तो प्रकाशक के लिए उत्पाद है जो पाठक नामक ग्राहक के लिए है। यह ग्राहक एक व्यक्ति भी हो सकता है और कोई पुस्तकालय भी। यह पाठक अपनी रुचि के अनुसार ही पुस्तक खरीदता है, पढ़ता है

कथादेश का मई अंक ‘जंगल का गीत’ लेकर आता है, तो सुदर्शन वशिष्ठ की कहानी किसी पक्षी के मानिंद उड़ान भरती है। यहां हिमाचली विरासत का साहित्य रू-ब-रू होता है, ठीक उस पहाड़ी चिडि़या की तरह, जो परिवेश से तिनके बटोर कर आत्मकथा लिखना चाहती हो। भयावह जंगल के बीच अकेली कहानी अपने भीतर इनसानी

पुस्तक समीक्षा उपन्यास का नाम :   अशोकसुंदरी लेखक का नाम :     सुमितकुमारसंभव प्रकाशक :            आथर्ज इंक पब्लिकेशंज मूल्य :    275 रुपए जया, विजया, लक्ष्मी, सुलक्षणा, दुर्गा, मांगी और माया। इन सभी पात्रों को काली और कालिका बनना है। और उपन्यास के अंत में सभी को ‘अशोकसुंदरी’ बन जाना है। यहां कई पुरुष

इस वर्ष पहले धर्मशाला में पुस्तक मेला लगा, अब शिमला में बुक फेयर लगने जा रहा है। भविष्य में भी ऐसे पुस्तक मेले होते रहेंगे, परंतु एक सवाल अकसर खड़ा हो जाता है कि साहित्य को आखिर पाठक क्यों नहीं मिल रहे हैं? इसी प्रश्न को खंगालने का प्रयास हमने इस बार ‘प्रतिबिंब’ में किया

पिछले कुछ वर्षों से मैं शिमला के स्कूल, कालेज और विश्वविद्यालयों में आयोजित होने वाले निबंध लेखन, नारा लेखन या फिर वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में निर्णायक के तौर पर जाती रही हूं। इस दौरान मुझे यह लगा कि लगभग सभी प्रतियोगिताओं में बच्चे इंटरनेट से ली गई विषय वस्तुओं पर निर्भर रहते हैं। नतीजा यह होता