प्रतिबिम्ब

निकल आई है सुबह की धूप नरम, नाजुक, भोली सी, प्यारी सी किसी मेमने जैसी सुबह की धूप उतर रही है हौले-हौले, शांत भाव से आंगन में, खिड़कियों के पास घर की छतों पर पेड़ों की टहनियों पर ओस से नहाए गुलाबों पर खेल रही है खेल शिशुओं की नींद से कर रही है दान

क्या आज का साहित्य ऐसा है जिसे पढ़ने में पाठक रुचि नहीं लेता है? आज की स्थिति को देखते हुए लगता तो ऐसा ही है। साहित्य के घटते पाठकों के आंकड़ों को देखें तो यह बात सही नजर आती है। आज का साहित्य ऐसा है जिसमें पाठक रुचि नहीं लेता है। विशेषकर युवा आकांक्षा के अनुरूप

        कुल पुस्तकें : 35         शोध ग्रंथ : एक, नामत :- बौधिचर्या          साहित्य सेवा : 50 वर्ष        कुल पुरस्कार : 12 प्रो. परमानंद शर्मा का जन्म पंजाब के जिला जालंधर के अंतर्गत घोड़याल गांव में 17 नवंबर 1923 को एक निर्धन

पुस्तक समीक्षा पुस्तक का नाम : दुनिया जैसी मैंने देखी लेखक का नाम : डा. चिरंजीत परमार प्रकाशक : ब्ल्यू रोज पब्लिशर्ज मूल्य : 170 रुपए फलों की किताब में साहित्य के फूल। जिंदगी भर जंगली फलों की तलाश करते-करते एक वैज्ञानिक ने अपनी सैर को सफरनामा बना डाला। इस घुमक्कड़ी के हजारों रंग किताब

माता-पिता तक माता-पिता तक घर, घर होता है सास-श्वसुर तक ससुराल बहन-भाई तक आना-जाना इज्जत पाना घर-बागीचे आबाद इसके बाद किसने देखा जिसने देखा वाद-विवाद अथवा ढहते मकान घर-छप्पर बरबाद कदम कदम पर चौराहे मिलते रहता फिल्म सरीखा याद अंतर्मन में बजता केवल, अनहद नाद। -डा. प्रत्यूष गुलेरी, धर्मशाला  

किताब के संदर्भ में लेखक दिव्य हिमाचल के साथ साहित्य में शब्द की संभावना शाश्वत है और इसी संवेग में बहते कई लेखक मनीषी हो जाते हैं, तो कुछ अलंकृत होकर मानव चित्रण  का बोध कराते हैं। लेखक महज रचना नहीं हो सकता और न ही यथार्थ के पहियों पर दौड़ते जीवन का मुसाफिर, बल्कि युगों-युगों

ढूंढने की सभी कोशिशों में खुद की जेब को आश्वस्त किया जा रहा है कि तुम्हें कुछ नहीं होगा। तुम्हारी तलाशी के सभी रास्ते बंद हैं। उनकी हर हरकत पर नजर है कि कहीं कुछ मिल जाए तो पौ फटने से पहले उन्हें धर लिया जाए। मकसद की इस आंख-मिचौली से सब कुछ मचल-मचल गया

मेरी किताब के अंश : सीधे लेखक से किस्त : 15 ऐसे समय में जबकि अखबारों में साहित्य के दर्शन सिमटते जा रहे हैं, ‘दिव्य हिमाचल’ ने साहित्यिक सरोकार के लिए एक नई सीरीज शुरू की है। लेखक क्यों रचना करता है, उसकी मूल भावना क्या रहती है, संवेदना की गागर में उसका सागर क्या

गांव की एक शाम एक नई पुस्तक हाथ लगी, ‘गांव की एक शाम’। लेखक विक्रम गथानिया की कहानियों का संग्रह है यह। चौदह कहानियों के इस संग्रह को कुल 84 पन्नों में सहेजा गया है। विक्रम की लेखन विधा से ज्ञात होता है कि वह स्वयं भी ग्रामीण परिवेश में  रमे-रचे हैं। संग्रह की पहली