संपादकीय

सेना की एक जीप से बांधा गया एक पत्थरबाज…! कश्मीर के बड़गाम इलाके का यह वीडियो सच है या संपादित, हमारा सरोकार यह नहीं है। सरोकार यह है कि उस बंधे पत्थरबाज पर भी पत्थरों की ही बौछार की जानी चाहिए थी। उसे लहूलुहान होने देना चाहिए था। उसे पीड़ा और दर्द से चीखते देना

आखिर शराब पानी बनकर तो बिकती नहीं, और इसलिए हिमाचल में भी बिकी खून बनकर। यकीन न हो तो उस विरोध को खंगाल लें जिसे गांव-कस्बे की औरतें अपने कंधों पर उठाकर चल रही हैं। मांग सिर्फ इतनी है कि उनकी बस्ती में ही शराब का ठेका क्यों? आधी आबादी का यह शोर मात्र नहीं,

सरकारी तजुर्बे का सारांश तो बताएगा कि यह दिन यानी हिमाचल दिवस, प्रदेश के अस्तित्व की चुनौतियों को दूर करने की इबादत सरीखा है। यह हुआ भी और इस तरह का मूल्यांकन आवश्यक है, फिर भी राज्य की तस्वीर को हम ऐसी प्रशंसा के फ्रेम में टांग कर मुकम्मल नहीं मान सकते। हिमाचली अस्तित्व की

भोरंज की जीत-हार से हिमाचल विधानसभा के समीकरण तो यथावत हैं, लेकिन भाजपा का तेज अवश्य ही मुखर होगा। शायद भाजपा की जीत का श्रेय न बंटे, लेकिन कांग्रेस के भीतर झांकने का सबब बनकर पड़ताल होनी चाहिए। खास तौर पर हार का ठीकरा फोड़ा जाएगा, तो एक साथ कई गर्दनें चाहिएं। अगर भोरंज उपचुनाव

शर्मनाक है कि भारत में आज भी ऐसे इमाम हैं, जो देश के चुने हुए प्रधानमंत्री के खिलाफ 25 लाख रुपए का फतवा जारी करते हैं और एक टीवी चैनल पर लाइव बहस के दौरान भाजपा प्रवक्ता प्रेम शुक्ला को ‘बहन की गाली’ देकर चले जाते हैं। हमें गाली को स्पष्ट करना पड़ा, क्योंकि हम

पाकिस्तान में भारतीय कैदी कुलभूषण जाधव के मुद्दे पर संसद के दोनों सदन गरम और आक्रोशित रहे। संसद में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को यहां तक बयान देना पड़ा कि भारत के बेटे को बचाने के लिए ‘आउट ऑफ दि वे’ काम भी करेंगे। ‘आउट ऑफ दि वे’ पाकिस्तान के लिए साफ धमकी है और

बेरोजगारी भत्ते का सुरमा पहने नगरोटा बगवां की रैली वास्तव में सूरमा बनाना किसे चाहती है, यह स्पष्ट होकर भी अस्पष्ट सा प्रतीत होता है। मानना पड़ेगा कि रैली हुई और यह भी स्वीकार करना पड़ेगा कि रैली उस वक्त हुई, जब सरकार के मुखिया आफत में हैं। बेशक युवाओं के पक्ष में हुई रैली

मिजाज बदलने की मंशा इनसान के लक्ष्यों को सुधार देती है और अगर प्रशासनिक तौर पर इसे तरजीह मिले तो सरकारी कार्य संस्कृति बदल सकती है। शिमला में खुले बुक कैफे की परिकल्पना में कैथू जेल का मानवीय सुधार कार्यक्रम अब जनता से रू-ब-रू है। शिमला के रिज पर बुक कैफे की एक साधारण व्याख्या

एक बार फिर यह साबित हो गया है कि भारत-पाकिस्तान के आपसी रिश्ते सामान्य नहीं हैं। पाकिस्तान हमें दुश्मन देश मानता है। बेशक दोनों देश नागरिकों के स्तर पर संवाद और संपर्क की बातें करते रहे हैं, लेकिन मौका मिलते ही पाकिस्तान भारत के नागरिक को दबोचने को तैयार बैठा है। भारतीय नागरिक एवं पूर्व