संपादकीय

मिजाज बदलने की मंशा इनसान के लक्ष्यों को सुधार देती है और अगर प्रशासनिक तौर पर इसे तरजीह मिले तो सरकारी कार्य संस्कृति बदल सकती है। शिमला में खुले बुक कैफे की परिकल्पना में कैथू जेल का मानवीय सुधार कार्यक्रम अब जनता से रू-ब-रू है। शिमला के रिज पर बुक कैफे की एक साधारण व्याख्या

एक बार फिर यह साबित हो गया है कि भारत-पाकिस्तान के आपसी रिश्ते सामान्य नहीं हैं। पाकिस्तान हमें दुश्मन देश मानता है। बेशक दोनों देश नागरिकों के स्तर पर संवाद और संपर्क की बातें करते रहे हैं, लेकिन मौका मिलते ही पाकिस्तान भारत के नागरिक को दबोचने को तैयार बैठा है। भारतीय नागरिक एवं पूर्व

अंततः जाखू को छूने के प्रयास में निजी निवेश सफल हुआ और एक पूरे दशक की मेहनत ने रज्जु मार्ग स्वीकार कर लिया। शिमला के अपने शृंगार में रज्जु मार्ग का शुरू होना एक उपलब्धि के मानिंद है, लेकिन यह निजी निवेश की असहज चढ़ाई है जो जाखू मंदिर तक पहुंचने से भी अधिक कठिन

गोरक्षा के नाम पर हिंसा गलत है। गोहत्या न की जा सके, इसके लिए देश भर में एक ही कानून बनाना चाहिए। यह चिंता और नसीहत सरसंघचालक मोहन भागवत ने जताई है। सिर्फ यही नहीं, प्रधानमंत्री मोदी ने दिल्ली की एक जनसभा के दौरान कहा था कि गोरक्षकों में 70-80 फीसदी लोग असामाजिक तत्त्व होते

मौसम का मरघट सरीखा व्यवहार अब प्रगति को नीचा दिखा रहा है और जहां खंडहर बनते हैं हमारे अपने ही मकसद। अप्रैल महीने की छटा में छटांक हो गया किसान और इंद्र देवता ने उड़ा दी खेती की शान। पता नहीं मौत के आलिंगन में क्यों फंस गया मौसम और क्यों हमारे अस्तित्व के खिलाफ

इस तर्ज का मुहावरा हिंदोस्तान और चीन के संदर्भ में शुरू हुआ था-‘हिंदी-चीनी, भाई-भाई।’ लेकिन जिस तरह चीन ने भारत की पीठ में छुरा घोंपा और 1962 का युद्ध हुआ। उसके बाद इस मुहावरे की मौत हो गई। बहरहाल चीन का संदर्भ यहीं तक सीमित रखते हैं, लेकिन नेपाल, भूटान, ईरान और बांग्लादेश आदि देशों

मनरेगा का अवतार हिमाचल के गांव-देहात की भौतिक तस्वीर को बदलने की एक अनिवार्यता सरीखा बनता जा रहा है। प्रदेश के एक बड़े वर्ग के लिए मनरेगा अब जीवन की परिभाषा बनकर दर्ज होती है, तो इसका एक अलग से सामाजिक आवरण भी तैयार हो रहा है। ऐसे में अगले साल के सफर में सात

राजनीति में कुछ चेहरे बेनकाब हुए हैं। एक विश्वास के प्रति मोहभंग हुआ है। एक छवि तार-तार हुई है। फिर राजनीति की परिभाषा यथावत है। अब लगता है कि जिस राजनीतिक व्यवस्था को आमूल बदलने के दावे किए गए थे, वे खोखले थे। भ्रष्टाचार को समाप्त करने, नैतिक मूल्यों की स्थापना के लिए, कुछ ईमानदार

सड़क से बड़ी बोतल और बोतल से बड़ी कीमत। इस अंदाज की जिरह जब खजाने से आती हो, तो शराबबंदी के मायने बदल जाते हैं। अंततः हिमाचल ने भी सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से आबकारी उपलब्धियों का बचाव करते हुए सोलह राज्य मार्गों को पदावनत कर दिया। शराब की बोतल का एहसास और शराबी