हिमाचल फोरम

14 सितंबर को हिंदी दिवस देश भर सहित प्रदेश में भी मनाया जाएगा, लेकिन सिर्फ एक दिन हिंदी दिवस मनाने से राजभाषा अपना खोया हुआ स्थान प्र्राप्त कर सकेगी। इस बात को लेकर ‘दिव्य हिमाचल’ ने जिला मुख्यालय धर्मशाला में लोगों की नब्ज टटोली, तो यूं निकले उनके जज्बात       हिंदी में कोई बात नहीं करता

खुद गुलाम बनते जा रहे हैं धर्मेंद्र का कहना है कि अंग्रेजों ने अपनी कूटनीतिक चालों से देश का गुलाम बनाया था, लेकिन उनके द्वारा छोड़ी गई अंग्रेजी की छाप से हम खुद गुलाम बनते जा रहे हैं। आज की युवा पीढ़ी अंग्रेजी की ओर से भागती दिख रही है, जिससे मातृभाषा तो दूर हिंदी

14 सितंबर को हिंदी दिवस देश भर सहित प्रदेश में भी मनाया जाएगा, लेकिन सिर्फ एक दिन हिंदी दिवस मनाने से राजभाषा अपना खोया हुआ स्थान प्र्राप्त कर सकेगी। इस बात को लेकर ‘दिव्य हिमाचल’ ने सोलन में लोगों की नब्ज टटोली, तो यूं निकले उनके जज्बात हिंदी भाषा के दिन खराब सोलन के प्रख्यात

14 सितंबर को हिंदी दिवस देश भर सहित प्रदेश में भी मनाया जाएगा, लेकिन सिर्फ एक दिन हिंदी दिवस मनाने से राजभाषा अपना खोया हुआ स्थान प्र्राप्त कर सकेगी। इस बात को लेकर ‘दिव्य हिमाचल’ ने लोगों की नब्ज टटोली, तो यूं निकले उनके जज्बात प्रचार-प्रसार बढ़ाना चाहिए राजकीय महाविद्यालय हरोली के प्रो. डा. परमेल

कुल्लू —अपनी मात्र बोलने में भारतीय नागरिक को कभी नहीं झिचक महसूस करनी चाहिए। बल्कि अपनी मात्रा भाषा हिंदी बोलने पर उसे गर्व महसूस करना चाहिए यही नहीं, सभी दफ्तरों में भी काम हिंदी में होना चाहिए। यह कहना है हिंदी दिवस पर कुल्लू के युवाओं का। इस संबंध में जब कुल्लू के लोगों से

शिमला के राम बाजार की गलियों में खेलने वाले चार साल के युग की निर्मम हत्या ने शहर के हर एक शख्स को झकझोर कर रखा दिया था। पैसों के लालच में अपने ही पहचान वालों की हैवानियत का शिकार बने युग को मिले न्याय के साथ ही इस जघन्य अपराध की काली यादें सभी

जी हां! सोशल मीडिया पर एक-दूसरे को नीचे लगाने की होड़ के बीच एक आवाज ऐसी भी आ रही है। आए दिन विभिन्न मसलों पर विरोध के बहाने गाली-गलौज से बुद्धिजीवी वर्ग बुरी तरह से तंग आ गया है। खासकर सियासी दलों के नेता जब विरोधी से बदसलूकी कर रहे हैं,तो इससे समाज में गलत

सोशल मीडिया पर अभद्र भाषा से बरपा हंगामा सड़कों तक पहुंच गया है। हिमाचल के दो सियासतदानों की अभद्र टिप्पणियों ने आम आदमी को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि किसी की भी इज्ज्त तार-तार कर देने वाली ऐसी भाषा क्या सोशल मीडिया पर होनी चाहिए ? विरोध के लिए क्या हमारे शब्दकोश में

सोशल मीडिया पर अभद्र भाषा से बरपा हंगामा सड़कों तक पहुंच गया है। हिमाचल के दो सियासतदानों की अभद्र टिप्पणियों ने आम आदमी को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि किसी की भी इज्ज्त तार-तार कर देने वाली ऐसी भाषा क्या सोशल मीडिया पर होनी चाहिए? विरोध के लिए क्या हमारे तरकश में इसी तरह के