वैचारिक लेख

पेशे के रूप में जब उन्होंने अपना कार्य आरंभ किया तो उन्हें इसमें आनंद आने लगा और बातचीत के उनके तरीके ने, उनके लहजे से, उनके ज्ञान ने उनकी लोकप्रियता बढ़ाई। बाद में उन्होंने कई और भाषाएं भी सीखीं और अपने काम में और ज्यादा पारंगत होती चली गईं। एक विदेशी महिला लुइस निकल्सन ने

गरीब महिलाओं को गैस सिलेंडर मुफ्त उपलब्ध करवाकर एक सराहनीय पहल को अंजाम दिया गया था। मगर गैस सिलेंडर की लगातार बढ़ती कीमतों की वजह से ऐसी योजनाओं का सार्थक बनना अब आसान नहीं रहा है। गैस सिलेंडर पर केंद्र सरकार उपभोक्ताओं के खाते में सबसिडी जमा करती थी। पिछले एक वर्ष से उपभोक्ताओं के

सुरेश सेठ sethsuresh25U@gmail.com आप यहां क्या बेचने आए हैं, साहब। कंजी आंखों वाले चालाक आदमी ने हमें पूछा। बहुत दिन पहले वह हमारे साथ इस फुटपाथ पर सोने की जगह पाने के लिए झगड़ा किया करता था। आज वे फुटपाथ नहीं रहे। उसके साथ एक घासीला मैदान हुआ करता था, वहां अब उसका आलीशान प्रासाद

यह सही है कि भारत सरकार के प्रयास से इस ‘स्वामीएच’ फंड को शुरू किया गया है, लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं कि यह कोई सरकारी सबसिडी योजना है। यह एक निवेश फंड है, जिसमें 50 प्रतिशत भागीदारी केंद्र सरकार की है और शेष में 13 संस्थाओं का योगदान है, जिनमें भारतीय स्टेट बैंक,

21वीं सदी में पैदा होने वाले बच्चे जातीय भेदभाव में विश्वास नहीं करते। समाज के लिए बेहतर भी यही होगा यदि आरक्षण खत्म कर इन्हें इसकी परछाई से दूर रखा जाए। आज इस  देश के शीर्ष पदों पर स्वयं राष्ट्रपति महोदय अनुसूचित जाति और प्रधानमंत्री अन्य पिछड़ा वर्ग से आते हों तो भला आरक्षण का

अशोक गौतम ashokgautam001@Ugmail.com कल पता नहीं कवि शिरोमणि को क्या क्यों दौरा पड़ा कि वे घर में बरतन धोने को सेकेंड्री मान बैठे और कविता को प्राइमरी। बस, फिर क्या था, ज्यों ही उन्होंने जूठे बरतनों की ओर पीठ की, उनकी बीवी उन पर वैसे ही टूट पड़ीं, जब घनानंद ने भरे राज दरबार में

इसलिए सरकार को चाहिए कि ऐसी नीतियां लागू करे जिससे जनता स्वयं उत्पादक कार्यों में लिप्त हो सके और आय अर्जित कर सके और अनाज खरीद सके। जैसे हमारे गांव के युवा यदि संगीत का निर्माण कर उसका विक्रय कर सकें और उस रकम से यदि वही 30 किलो गेहूं खरीदते तो सरकार के ऊपर

इन मापदंडों के आधार पर जिन समुदायों में आदिम लक्षण, भौगोलिक अलगाव, विशिष्ट संस्कृति, बाहरी समुदायों के साथ संपर्क में संकोच तथा आर्थिक रूप से पिछड़ापन हो उन्हें इस सूची में शामिल करने की सिफारिश की गई है। लेकिन लोकुर समिति द्वारा निर्दिष्ट सभी शर्तों पर खरा उतरने के बाद भी हाटी समुदाय अनुसूचित जनजाति

अजय पाराशर लेखक, धर्मशाला से हैं कई मर्तबा घंटी बजाने और दरवाज़ा खटखटाने के बाद जब पंडित जॉन अली बाहर नहीं निकले तो मजबूरन मुझे उनके घर में घुसने की हिमा़कत करनी पड़ी। वैसे उनका पड़ोसी और लंगोटिया होने के नाते मुझे पूरा इ़िख्तयार था कि मैं कभी भी मुंह उठाए उनके घर में घुस