वैचारिक लेख

निर्मल असो स्वतंत्र लेखक अचानक उनकी नजर पकौडे़वाली गली पर पड़ गई। खासा बाजार और हर दिन हजारों ग्राहक। उनका अटूट विश्वास था कि वहां सब इसलिए खुश हैं क्योंकि सत्ता यह सब करने दे रही है, वरना इन दुकानदारों में से पता नहीं कितनों ने उनकी पार्टी को वोट नहीं दिया होगा। उन्हें यह

जिस नारी के आंचल में दूध है, उसकी आंखों में आखिर पानी क्यों? पापा के आंगन की मल्लिका आखिर मर्द द्वारा स्थापित वर्जनाओं व वासना के बाहुपाश में दासी कैसे बन जाती है? खुद को प्रगतिशील घोषित करने वाले पुरुष समाज के लिए ये लानत भरे सवाल हैं… कभी देवी की सूरत, कभी श्रद्धा की

जबरदस्त बहुमत के साथ 2014 में सत्ता में आई भाजपा सरकार ने इसे पारित कराने के कोई प्रयास नहीं किए जबकि अपने चुनावी-घोषणापत्र में उन्होंने इसका वादा भी किया था। अगर इस सरकार की राजनीतिक इच्छाशक्ति है तो दशकों का सपना मिनटों में पूरा हो सकता है… हमारा लोकतंत्र आज एक कठिन चुनौती का सामना

मैंने स्वयं ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत से ऐसे परिवार देखे हैं, जिनकी एक ही बेटी है और अभिभावक उसकी परवरिश में कोई  कसर नहीं छोड़ते। जरूरत है बस थोड़ा सजग होने की। बेटी अनमोल है, उसे इतना सशक्त बनाएं ताकि वह भी आगे जीवन में सक्षम बने, अपने फैसले स्वयं ले सके, विपरीत परिस्थिति में

कर्नल (रि.) मनीष धीमान स्वतंत्र लेखक देश के 5 राज्यों में चुनावों की घोषणा हो चुकी है तथा सारी राजनीतिक पार्टियां पूरे दमखम से चुनावी रैलियों में व्यस्त हैं। हिमाचल में भी नगर निगम के चुनावों की सुगबुगाहट तेज हो गई है और इस बार चर्चा यह भी है कि हिमाचल की दोनों मुख्य पार्टियां

एक मुसलमान का, चाहे उसका पुतला ही क्यों न हो, जलाया गया था। क़ायदे से उसे दफनाना चाहिए था। लेकिन ग़ुलाम नबी इससे भी डरे नहीं। आखिर थे तो भट्ट ही। कश्मीर में आज भी अनेक भट्ट दफनाते नहीं जलाते ही हैं, चाहे पुतला ही क्यों न हो। एक पत्रकार ने आखिर पूछ ही लिया

ओलंपिक व अन्य अंतरराष्ट्रीय स्तर की खेल प्रतियोगिताओं में आज बहुत कड़ी प्रतिस्पर्धा देखने को मिल रही है। जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी व चिकित्सा के क्षेत्र में उन्नति हो रही है, वैसे-वैसे उत्तम आहार व उन्नत शारीरिक क्रियाओं से मानव के स्वास्थ्य में काफी ज्यादा सुधार हुआ है। जब स्वास्थ्य में सुधार होगा तो खेल परिणाम स्वाभाविक

पूरन सरमा स्वतंत्र लेखक चुनाव टिकिटार्थियों में मारा-मारी मची हुई है। चुनाव में खड़े होने वाले को पार्टी के नए कायदे-कानून समझाए जा रहे हैं। भीड़ कम करने के लिए स्वच्छ छवि की दुहाई दी जा रही है। जनता में उत्तम छवि तथा सही चरित्र वाले को टिकिट देने की पार्टियां आए दिन घोषणाएं कर

रोजगार के अवसरों की कमी एक बहाना मात्र है। इंटरनेट और तकनीक के मेल से नई क्रांति आई है। यह सही है कि रोज़गार छिने हैं, नौकरियां गई हैं, लेकिन यह भी सच है कि नए ज़माने की आवश्यकताओं के अनुरूप हुनरमंद लोगों की मांग बढ़ी है और उनके वेतनमान में उछाल आया है। एक