वैचारिक लेख

प्रो. एनके सिंह अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार इस बात की प्रबल संभावना है कि संसदीय चुनावों में प्रदर्शन को देखते हुए सभी को यह उम्मीद थी कि भाजपा के पास जीत का कार्ड है, लेकिन केजरीवाल द्वारा मतदाताओं को सुविधाओं के कार्ड बांटने से और मुफ्त वितरण ने स्थिति बदल दी है। उनके पक्ष में दो

पूरन सरमा स्वतंत्र लेखक रोने का रोना लेकर बैठ जाओ तो फायदे ही फायदे हैं। रोना जीवन में बहुत काम आता है। जिसे रोना नहीं आता, समझो वह पिछड़ गया। बात-बात पर आंखों से आंसू बहने लगें तो समझो जीवन नैया पार लग गई। रोने के लिए यह कतई आवश्यक नहीं कि आप वास्तव में

पीके खुराना राजनीतिक रणनीतिकार एक तरफ महंगाई का तांडव है, दूसरी तरफ  मांगों का सिलसिला। लोग तनाव में जी रहे हैं और इसका दुष्प्रभाव जीवन के हर क्षेत्र में देखा जा सकता है। तनावग्रस्त व्यक्ति खुद पर काबू नहीं रख पाता और किसी ऐसी जगह या ऐसे समय अपना गुस्सा उगल देता है कि जीवन

शेर सिंह लेखक, कुल्लू से हैं माहवारी के दौरान ऐसी महिला को घर के खुड्ड, यानी पशुओं के बाड़े में पशुओं के साथ रहना पड़ता है। खाना भी वहीं और सोना भी वहीं। यानी मानव और मवेशियों का साथ! ऐसी स्थिति में यदि किसी महिला का छोटा बच्चा, जो मां के दूध पर निर्भर हो,

सुरेश सेठ sethsuresh25U@gmail.com लगता है भारत ही नहीं, पाकिस्तान भी डारविन महोदय के सिद्धांत को गलत सिद्ध करने पर तुल गया है। डारविन महोदय ने कहा था, इनसान का विकास इतिहास बतलाता है कि उसके पूर्वज कभी वानर और चिम्पैंजी थे, फिर वनमानुस बने और अंततः इनसान के रूप में नजर आए। पहले चौपाये थे,

अनुज कुमार आचार्य लेखक, बैजनाथ से हैं आजादी के बाद से अपने अस्तित्व में आने और 25 जनवरी 1971 को पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल होने के बाद से विकास के मामले में हिमाचल प्रदेश ने एक लंबी छलांग लगाई है। अपने सीमित वित्तीय संसाधनों के बावजूद लगभग प्रत्येक सरकार ने हिमाचल को अपने पैरों

बाल मुकुंद ओझा स्वतंत्र लेखक महंगाई ने एक बार फिर से देश में दस्तक देकर लोगों का जीना हराम कर दिया है। इसने मोदी द्वारा जनता से किए वादों पर सवाल खड़ा कर दिया है। लोगों ने विभिन्न मोर्चों पर राहत पाने के लिए भाजपा के हाथों में सत्ता सौंपी थी, लेकिन महंगाई सरकार की

अशोक गौतम ashokgautam001@Ugmail.com बर्फ  में असली घरवाली को घर छोड़ टाइम पास बाहरवाली के साथ मस्तियां करते-करते जब नेताजी ठंडे पड़ गए तो विपक्ष के लीड नेताजी को ख्याल आया कि ऐसे कैसे हो गया जो उन्होंने बर्फबारी को लेकर सरकार को नहीं कोसा? आज तक तो संजीदा विपक्ष का धर्म निभाते हुए सरकार द्वारा

भरत झुनझुनवाला आर्थिक विश्लेषक वित्तीय घाटा उस रकम को बोलते हैं जो सरकार अपनी आय से अधिक खर्च करती है। जैसे सरकार की आय यदि 80 रुपए हो और सरकार खर्च 100 रुपए करे तो वित्तीय घाटा 20 रुपए होता है। वित्तीय घाटे का अर्थ हुआ कि सरकार अधिक किए गए खर्च की रकम को