पीके खुराना

जब हम अपने फैसलों की ऐसी समीक्षा करेंगे तो हम बहुत सी नई बातें सीखेंगे, अपने गुरू स्वयं बनेंगे और भविष्य के लिए सही फैसले लेने में समर्थ हो सकेंगे। किसी भी फैसले के विकल्पों को और हर विकल्प के लाभ-हानियों के लिखित विश्लेषण का लाभ यह है कि एक साल बाद, पांच साल बाद,

जीवन में उतार-चढ़ाव आएंगे, कठिनाइयां आएंगी, अमीरी-गरीबी आएगी। तब दोनों कितना धीरज रखते हैं, कितना विश्वास रखते हैं खुद पर और अपने पार्टनर पर, इससे शादी या बच जाती है या टूट जाती है। रिश्ते धीरे-धीरे पकते हैं, धीरे-धीरे मजबूत होते हैं। हमारे समाज में यह आम प्रथा है कि बच्चे हो जाएं तो घर

इसका मतलब है कि हमारे रिश्तों में, हमारी पसंद-नापसंद पर निर्भर करता है कि हम किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा सामने लाए गए किसी नए तथ्य को स्वीकार करेंगे या नहीं करेंगे। सच यही है कि अक्सर तथ्य हमारे विचार नहीं बदलते, बल्कि किसी व्यक्ति पर हमारा विश्वास यह तय करता है कि हम अपने विचार

हरदम कुछ नया सीखना और सीखते रहना ही हमारी मुश्किलों से निजात दिलाने का सर्वश्रेष्ठ साधन है। इसी तरह जब हम कहीं अटक जाएं, राह न सूझे तो किसी विश्वस्त शुभचिंतक से बात करना समस्या के हल का साधन हो सकता है। समस्याओं के हल का साधन समस्या से भागना नहीं है। समस्या का सामना

याद रखिए, समस्या के समाधान का पहला चरण यह है कि हम समस्या को कागज पर लिखें। लिखने से बहुत सी बातें खुद-ब-खुद स्पष्ट हो जाती हैं क्योंकि तब हमारा दिमाग एक ही विषय पर फोकस करता है। इससे कई नए आइडिया आते चलते हैं। इस तरह हम खुद अपना मार्गदर्शन करते हैं और समस्या

इसे थोड़े और स्पष्ट शब्दों में कहें तो सच यह है कि तथ्य हमारे विचार नहीं बदलते, बल्कि किसी व्यक्ति पर हमारा विश्वास यह तय करता है कि हम अपने विचार बदलेंगे या नहीं। यानी, हमारे विचार बदलने में सच की भूमिका वैसी नहीं है जो भूमिका सामने वाले व्यक्ति के प्रति हमारे विश्वास की

उन्होंने कहा कि ज्यादातर भारतीय ‘कर्स ऑफ  नालेज’ यानी ज्ञान के अभिशाप नामक रोग से ग्रसित हैं। ‘कर्स ऑफ  नालेज’ का खुलासा करते हुए उन्होंने मुझे बताया कि आम भारतीय या तो यह मानता है कि वह सब कुछ जानता है और उसे कुछ भी नया सीखने की जरूरत नहीं है। इसका दूसरा पहलू यह

इस सीख के तीन चरण हैं। पहला चरण है जानना, किसी तथ्य को जानना, उसकी जानकारी होना, उसका पता होना। दूसरा चरण है मानना, यह मानना कि हां, यह सच है, संभव है, डू-एबल है, करने योग्य है। तीसरा चरण है ठानना, यह ठान लेना कि इसी को जीवनयापन का, आय का, या कम से

वित्त विधेयक में शामिल मात्र 34 शब्दों ने भाजपा और कांग्रेस के गैरकानूनी काम को वैधानिक मान्यता दे दी। राजनीतिक धूर्तता से परिपूर्ण उन 34 शब्दों का हिंदी भावार्थ यह है : ‘सन 2016 के वित्त अधिनियम के सेक्शन 236 के प्रथम पैराग्राफ में शामिल शब्दों, अंकों और अक्षरों 26 सितंबर 2010 की जगह सभी