राजेंद्र मोहन शर्मा, पूर्व डीआईजी

हालांकि न्यायाधीश डर या पक्षपात के बिना न्याय करने की शपथ लेते हैं, लेकिन अपमानजनक आलोचना की आशंकाओं ने उन्हें इस मामले से हटने के लिए मजबूर कर दिया। यह ठीक है कि कुछ कनिष्ठ जजों ने समय-समय पर आपत्तिजनक निर्णय देकर अपने पद की गरिमा को ठेस पहुंचाई है, मगर इस मामले में कार्रवाई

इसके अतिरिक्त अकुशल व स्वार्थी सलाहकार समय रहते सरकार की कमियों के बारे में उच्च नेतृत्व को आगाह नहीं करते तथा अपनी सुख-सुविधाओं का लुत्फ उठाने में ही मशरूफ रहते हैं। अफसरशाहों द्वारा तैयार किए गए विधि-विधानों को यथावत रूप से ही लागू कर दिया जाता है तथा कई बार उनकी व्यावहारिकता की तरफ पूरा

कई बार कर्मचारियों व अधिकारियों के स्थानांतरण राजनीतिक कारणों से किए जाते हैं तथा प्रताडि़त मुलाजिमों को या तो राजनीतिज्ञों की शरण में जाना पड़ता है या फिर न्यायालयों में चक्कर लगाने पड़ते हैं। सरकार स्थानांतरण की नीतियों को कागजों पर तो बना लेती है, मगर इनका कार्यान्वयन नहीं किया जाता। कर्मचारियों से भेदभाव बंद

चार, समय को व्यर्थ न गंवाएं तथा समय प्रबंधन की कला को सीखंे। समय किसी का इंतजार नहीं करता तथा आगे निकलता ही चला जाता है तथा ध्यान रखें कि एक बार बहते हुए नदी के पानी को दोबारा छुआ नहीं जा सकता। समय के कुप्रबंधन से आप बहुत पिछड़ जाओगे तथा एक साधारण व्यक्ति

अपने दैनिक जीवन यापन की सारिणी बनानी चाहिए तथा परमात्मा के ध्यान में कुछ समय गुजारना चाहिए। कोई हॉबी जैसे कि संगीत, लेखन, गार्डनिंग व बच्चों को पढ़ाने इत्यादि पर समय लगाना चाहिए। समाज सेवा में भी योगदान किया जा सकता है… रिटायरमेंट एक परिर्वतन है। जिस तरह मौसम बदलता है उसी तरह मनुष्य के

सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश कुरियन जोसेफ ने 2015 में एक निर्णय में कहा था कि मीडिया ट्रायल न्याय को पटरी से उतार देता है तथा लोगों का न्यायपालिका पर से विश्वास उठने लगता है। न्याय वितरण में पुलिस, प्रेस व न्यायपालिका का परिपूरक रोल होता है… किसी भी संगठित व्यवस्था का आधार कानून होता

इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि अधीनस्थ पुलिस कर्मचारी को तनावमुक्त रखने के लिए पुलिस नेतृत्व को ईमानदारी, निष्ठा व निष्पक्षता से कार्य करना होगा तथा अवांछित आदेशों को नकारना होगा… आज भारत की पुलिस जिन परिस्थितियों एवं वातावरण में काम कर रही है, वह तनावपूर्ण एवं असंतोषजनक है।

यह बात भी ठीक है कि कुछ अधिकारी अपनी अधीनस्थ महिलाओं के साथ आपसी सहमति से संबंध बनाते रहते हैं, मगर उन्हें अपने घर, परिवार व संस्था की खातिर ऐसे कार्यों को नहीं करना चाहिए तथा एक रोल मॉडल की तरह अपना उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए… आौपचारिक या अनौपचारिक, सरकारी व गैर सरकारी कार्यों में

हमारा देश मुलजिमों के ही मानवीय अधिकारों के संरक्षण में लगा हुआ है तथा हरसंभव प्रयत्न किया जाता है कि वह सजा मुक्त हो जाए। पुलिस के भी मानवाधिकार होते हैं… पुलिसमैन को देखते ही आम जनमानस के मानसिक पटल पर कोई अच्छा संदेश नहीं जाता है तथा उसे बुराई का पर्याय मान लिया जाता

परिणामस्वरूप सरकारी स्कूलों में केवल गरीब मजदूर के बच्चे ही पढ़ने के लिए जाते हैं और अध्यापकों को भी पता होता है कि इन बच्चों का मानसिक स्तर काफी नीचा है तथा वो इन्हें निष्ठापूर्वक पढ़ाने का कार्य नहीं करते। कई दूर-दराज में खोले गए स्कूलों का आलम तो यह होता है कि टीचर लोग