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यानी कहा जा सकता है कि पहले से ज्यादा पारदर्शी अर्थव्यवस्था, कालेधन पर लगाम, बैंकों की जमा में वृद्धि, राजस्व में वृद्धि आदि से अर्थव्यवस्था को सकारात्मक लाभ ही होंगे। कुछ अर्थशास्त्रियों का यह मानना है कि इससे भारत के बैंकों समेत वित्तीय संस्थानों में लगभग एक लाख करोड़ रुपए और जुड़ जाएंगे… आठ नवंबर

ऐसे में शहरों में सडक़ एवं यातायात व्यवस्था में सुधार के लिए कदम बढ़ाना जरूरी है। इससे एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचने में लगने वाला समय काफी कम हो जाएगा। खास तौर से जहां नए शहरों में अच्छी सडक़ों और पुराने शहरों में उपलब्ध जगह में ही पार्किंग बढ़ाने पर पूरा ध्यान देना

अनियंत्रित वाहन आगमन से फैलने वाले धुएं से स्थानीय स्तर पर तापमान वृद्धि की संभावना बढ़ जाती है… विश्व भर में पर्वतीय क्षेत्र अगम्यता और नाजुकता के कारण हाशिए पर रहते आये हैं। इस तथ्य को मान्यता देते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1992 के पर्यावरण और विकास पर आयोजित रिओ सम्मेलन में माउंटेन एजेंडा

जितना संभव हो, उतने पेड़-पौधे लगाकर उनका संरक्षण करने का भाव मन में जागृत होना आवश्यक है। अपने आसपास के वातावरण को स्वच्छ और हरा-भरा रखने के प्रयास करें, प्लास्टिक का उपयोग करने से बचें और दूसरों को भी जागरूक कर पुनीत कार्य के भागीदार बनना चाहिए। हवा में जहरीली लहरें बह रही हैं। जहरीली

पंजाबी में एक कहावत है ‘डिगी खोते तों ग़ुस्सा घुमार ते’। अर्थात कोई औरत गधे पर से गिर पड़ी तो वह सारा ग़ुस्सा कुम्हार पर निकालने लगी। इन राजवंशों के सिंहासन भारत के लोगों के नकारने से हिल रहे हैं और ये ग़ुस्सा नरेन्द्र मोदी पर निकाल रहे हैं। इस बार यह ग़ुस्सा भारतीय संसद

सही प्रबंधन मिले, इसके लिए नियमित जिला खेल अधिकारियों, उपनिदेशकों, प्रशिक्षकों व अन्य अधिकारियों की नियुक्ति बेहद जरूरी है। खिलाड़ी को तैयार करने में प्रशिक्षक की भूमिका जब बेहद जरूरी है तो फिर हम उसे सामाजिक व आर्थिक रूप से निश्चिंत कर शारीरिक व मानसिक पूरी तरह अपने प्रशिक्षण पर केन्द्रित क्यों नहीं होने देते…

हमें अपने जीवन में ऐसे बहुत से लोगों से पाला पड़ता है जो मामूली सी बात पर भी झगडऩा शुरू कर देते हैं। कभी स्थितियां विकट होती हैं और हमें समझ नहीं आता कि क्या करें या कभी हमारे पास कई ऐसे विकल्प होते हैं जिनमें से सबसे लाभदायक विकल्प चुनना आसान नहीं होता, और

स्मरण रहे प्रकृति संरक्षण का अलख जगाने वाली किंकरी देवी ने स्वीडन की ‘ग्रेटा थनबर्ग’ की तरह पर्यावरण पर एक भाषण देकर सुर्खियां नहीं बटोरी थी, मगर खनन माफिया से लडऩे के लिए पहाड़ की उस विख्यात पर्यावरणविद के पास पहाड़ जैसा हौसला व फौलादी जिगर जरूर था जिसके आगे खनन माफिया घुटने टेकने को

हालांकि अगले चार महीनों में जिस तेजी से ये नोट बैंकों में जमा होंगे, वो एक बार फिर से 2016 में हुई नोटबंदी की यादों को ताजा कर सकते हैं। ये सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का 1.3 फीसदी और मार्च महीने के आखिर तक सर्कुलेशन यानी चलन में रही नकदी का 10.8 फीसदी है।