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प्रेमचंद की एक कहानी है ‘कफन’! इसके दो पात्र घीसू और माधव निकम्मे और आलसी हैं। जब लड़के की पत्नी मर जाती है तो गांव वाले बाप-बेटे को कफन-दफन के लिए पैसा देते हैं जिसे ये दोनों शराब और खाने में उड़ा देते हैं। प्रेमचंद ने गरीबी की हकीकत बयान की थी, मगर कुछ लोग

मन सदैव सुगमता से प्राप्त होने वाली वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए लालायित रहता है, भक्ति का मार्ग कठिन होता है, इसलिए वह इससे दूर भागना चाहता है। माया के प्रभाव में पड़कर यह लुभावने दिखाई देने वाले विष तुल्य सांसारिक विषयों को सुख का साधन मान लेता है और उनकी ओर आकर्षित होता

स्वाभाविक था सभ्यताओं के संघर्ष में लगी अब्राहमी सेनाओं का ध्यान एक बार फिर भारत की ओर गया। किसी भी तरीके से भारत की राजनीति के केंद्र में पहुंच चुकी सांस्कृतिक शक्तियों को किसी भी तरीके से अपदस्थ करना होगा। शायद शुरू में उन्हें लगता होगा कि नरेंद्र मोदी एक-आध पारी खेल कर निकल लेंगे।

भूपिंद्र सिंह राष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रशिक्षक लड़कियों की युवावस्था 17-18 वर्ष की आयु में शुरू हो जाती है, लड़कों में यह एक-दो वर्ष बाद आती है। इस अवस्था तक आते-आते खिलाड़ी अपने-अपने खेल के लिए पूरी तरह तैयार हो गए होते हैं… किसी भी देश की तरक्की व खुशहाली उस देश के नागरिकों की फिटनेस पर

हमारे देश में तो बहुत छोटी कक्षाओं से ही यह सिलसिला आरंभ हो जाता है कि बच्चे के प्रोजेक्ट उनके मां-बाप, भाई-बहन पूरे करते हैं, साइंस की प्रेक्टिकल की कापियां कोई और बनाता है, पुराने शोधपत्र उठाकर कई बार तो सिर्फ  नाम बदल कर जमा करा दिए जाते हैं। ऐसे बच्चे जिन्हें व्यावहारिक ज्ञान है

अगर जनमंच के दौरान सुनी गई समस्याओं और उनको सुलझाने के लिए आला अधिकारी पूरा ध्यान दें तो लोगों को काफी लाभ हो सकता है। पूरे प्रदेश में जब जनमंच कार्यक्रम सजता है तो विभिन्न विभागों के मंत्री वहां जनता की समस्याओं को प्रशासन के सामने सुनते हैं। कुछ समस्याओं का निवारण उसी समय तो

ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे वह भी पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन और पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के रास्ते पर चल पड़े। जिस प्रकार से इन दोनों ने राजनीति को अपनाया वैसे ही श्रीधरन ने भी राजनीति में कदम रखा है। वास्तव में पार्टी राजनीति में बहुत सी गिरहें होती हैं और

लोक कलाओं को ढो रहे परंपरागत तथा पुश्तैनी कलाकारों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। विभिन्न कलाओं को आगे बढ़ाने में समाज के सभी धर्मों, वर्गों, जातियों का योगदान रहता है। इन्हें आर्थिक संरक्षण दिए जाने की नितांत आवश्यकता है। प्रदेश में विभिन्न कलाकारों एवं कलाओं के संरक्षण, संवर्धन तथा सांस्कृतिक विकास के उद्देश्य से

आश्चर्य यह है कि प्रकृति का पूजन करने वाली भारतीय संस्कृति आज हमारी धरती, पानी और वनस्पति को नष्ट करने पर तुली हुई है। इसकी तुलना में भोगवादी कहलाने वाली अमरीकी संस्कृति ने तमाम क्रियाशील जलविद्युत परियोजनाओं को सिर्फ  इसलिए हटा दिया है कि वहां के लोग खुली और अविरल बहती हुई नदी में स्नान