आस्था

– डा. जगीर सिंह पठानिया सेवानिवृत्त संयुक्त निदेशक, आयुर्वेद, बनखंडी अश्वगंधा के औषधीय गुण अश्वगंधा का झाड़ीनुमा पौधा होता है, जिसकी जड़ों का औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह प्रायः बंजर जमीन में स्वतःही होता है, लेकिन इसकी मध्य प्रदेश व राजस्थान में खेती भी की जाती है। इसमें कई विटामिन व

21 जून रविवार, आषाढ़, कृष्णपक्ष, अमावस, सूर्य ग्रहण 22 जून सोमवार, आषाढ़, शुक्लपक्ष, प्रथमा, गुप्त नवरात्र प्रारंभ 23 जून मंगलवार, आषाढ़, शुक्लपक्ष, द्वितीया, रथयात्रा उत्सव 24 जून बुधवार, आषाढ़, शुक्लपक्ष, तृतीया 25 जून बृहस्पतिवार, आषाढ़, शुक्लपक्ष, चतुर्थी 26 जून शुक्रवार, आषाढ़, शुक्लपक्ष, पंचमी, स्कंद षष्ठी 27 जून शनिवार, आषाढ़, शुक्लपक्ष, सप्तमी, विवस्वत सप्तमी

अंबुवाची मेला कामाख्या मंदिर का सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है। यहां देवी की पूजा योनि रूप में होती है, माना जाता है अंबुवाची उत्सव के दौरान माता रजस्वला होती हैं, हर साल 22 से 25 जून तक इसके लिए मंदिर बंद रखा जाता है। 26 जून को शुद्धिकरण के बाद दर्शन के लिए खोला

कई लोगों में डिप्रेशन या दिमागी तकलीफ  को लेकर एक गलत धारणा है कि ये सिर्फ  उसे ही होती है, जिसकी जिंदगी में कोई बहुत बड़ा हादसा हुआ हो या जिसके पास दुखी होने की बड़ी वजह हो। डिप्रेशन किसी सामान्य इनसान को भी हो सकता है। डिप्रेशन के दौरान इनसान के शरीर में खुशी

योग से हमारा शरीर तंदुरुस्त और निरोग रहता है। योग हेल्दी रहने में कई तरह से मदद करता है और मांसपेशियों को भी मजबूत बनाता है… योग का हमारे जीवन में विशेष महत्त्व है और यह हमें कई प्रकार के गंभीर रोगों की चपेट में आने से भी बचाता है। इतना ही नहीं कुछ विशेष

सद्गुरु  जग्गी वासुदेव इस धरती पर हर मनुष्य जो कुछ भी कर रहा है, वो क्या कर रहा है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। चाहे वो अपना जीवन भी किसी को दे रहा हो, वो इसीलिए ऐसा करता है क्योंकि इससे उसे प्रसन्नता मिलती है। उदाहरण के लिए आप लोगों की सेवा करना क्यों चाहते

हिमाचल प्रदेश को देवभूमि के नाम से जाना जाता है। ऐसे तो हिमाचल प्रदेश में कई धार्मिक स्थल हैं, लेकिन कोटला स्थित माता बगलामुखी की अलग ही पहचान है। बगलामुखी शब्द बगल और मुख से बना है। माता बगलामुखी मंदिर पठानकोट-मंडी नेशनल हाई-वे पर कोटला नामक स्थान पर स्थित है। यह मंदिर राजाओं द्वारा निर्मित

स्वामी विवेकानंद गतांक से आगे… केवल अपनी मुक्ति का यंत्र स्वार्थ है, इस युगधर्मानुकूल व्याख्यान के बाद अनेक गुरुभाई सहमत हो गए। स्वामी जी की वज्र कठोर देह भी कठोर परिश्रम से दुर्बल हो गई, लेकिन उन्होंने कभी इस बात की परवाह नहीं की और काम में लगे रहे। वे मठ में रहने वाले शिष्यों

स्कंद षष्ठी का व्रत कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को किया जाता है। ‘तिथितत्त्व’ ने चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी को स्कंद षष्ठी कहा है। यह व्रत संतान षष्ठी नाम से भी जाना जाता है। कुछ लोग आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी मानते हैं। स्कंदपुराण के