संपादकीय

बेशक अधोसंरचना विकास के राष्ट्रीय पैमानों में हिमाचल की कई छलांगें बाकी हैं, लेकिन इस दौरान ढांचागत उपलब्धियों को हम कमतर नहीं आंक सकते। एक पर्वतीय राज्य के रूप में हिमाचल से बेहतर अधोसंरचना का विकास किसी अन्य ऐसे राज्य में नहीं हुआ, फिर भी अब प्रश्न इसके सदुपयोग व मानकीकरण के बरकरार हैं। यहां

घोषणा-पत्र छापना बंद कर देने चाहिए। ये किसी पार्टी के वैचारिक तथा कार्यक्रम संबंधी दस्तावेज नहीं, बल्कि कागजों के छपे, मृत पुलिंदे हैं। क्यों इनकी छपाई और बंटाई पर लाखों रुपए खर्च किए जाएं? विकास की बातें भी क्यों की जाएं? उनमें न लच्छेबाजी है, न कोई गाली और बदजुबानी है। विकास तो एक निरंतर

इन खोखाधारकों को दाद दें या सहानुभूति प्रकट करें कि उनके अतिक्रमण से सरकाघाट स्कूल की दीवारें कांप गईं। बेशक स्कूल प्रबंधन व छात्र समूह ने अवैध कब्जों से शिक्षा के मंदिर को मुक्त करा लिया, लेकिन विरोध में सरकाघाट बाजार के बीच हुआ चक्का जाम, हिमाचली भविष्य में कानून-व्यवस्था की हालत को रेखांकित कर

पंजाब और गोवा में मतदान भी हो चुका है। पंजाब में 78 फीसदी से ज्यादा मतदान और गोवा में 83 फीसदी से ज्यादा मतदान किया गया है। पंजाब में 2012 की तुलना में मतदान कुछ अधिक है, जबकि गोवा ने पुड्डुचेरी का रिकार्ड तोड़ कर नया कीर्तिमान स्थापित किया है। इसकी यह व्याख्या नहीं की

विकास के प्रति विधायकों का विजन उस प्राथमिकता से निर्धारित होता है, जिसे बजट की रूपरेखा में तय करते हैं। हालांकि शिमला में बैठकों के दौरान विधायकों का मूड राजनीतिक अंकगणित के हिसाब से भी पढ़ा गया, फिर भी इस बहाने विधानसभा क्षेत्रों की जनता अपने प्रतिनिधियों की सोच का मूल्यांकन कर सकती है। विकास

आज चुनाव और बजट से अलग उस मुद्दे का विश्लेषण करेंगे, जो आतंकवाद और हमारी हिफाजत से जुड़ा है। बीते दिनों अचानक खबर आई कि लश्कर-ए-तोएबा और जमात-उद-दावा सरीखे आतंकी गुटों के संस्थापक सरगना हाफिज सईद को लाहौर में एक मस्जिद में नजरबंद किया गया है। तुरंत व्याख्याएं शुरू हो गईं कि अमरीकी राष्ट्रपति टं्रप

यूपीए सरकार के दौरान जब बसपा प्रमुख मायावती के दिल्ली आवास पर आयकर वालों ने छापा मारा था, तो कुछ लोग वहां मौजूद थे, जो 20,000 रुपए से कम राशि की पर्चियां काट रहे थे। चंदा देने वालों के नाम और राशि सब कुछ फर्जी थे। उसके बाद मायावती और उनके साथी नेताओं ने दलीलें

अदालत के जरिए न्याय के प्रति अटूट विश्वास का होना हमारे भीतर राष्ट्र और लोकतंत्र की मजबूती है। आस्था की जिस मजबूती से समाज कानून को देखता है, वहां न्यायाधीश का पद और गरिमा किसी अवतार से कम नहीं। मानवीय चरित्र के मायने और राष्ट्रीय कर्त्तव्य का उत्तरदायित्व, अदालती निर्णयों की फेहरिस्त में सम्मानित हो

जाहिर तौर पर वित्त मंत्री अरुण जेटली के ऊपर नोटबंदी के बुरे प्रभाव को दरकिनार करने की चुनौती रही है और इसी के परिप्रेक्ष्य में बजट के सुर सुनाई देंगे, हालांकि खुशी और खुशफहमी की ओर सरकने की आशा और आशंका पूरी तरह निरस्त नहीं हो रही है। यह बजट पूरी तरह वित्त मंत्री का