संपादकीय

जाहिर तौर पर वित्त मंत्री अरुण जेटली के ऊपर नोटबंदी के बुरे प्रभाव को दरकिनार करने की चुनौती रही है और इसी के परिप्रेक्ष्य में बजट के सुर सुनाई देंगे, हालांकि खुशी और खुशफहमी की ओर सरकने की आशा और आशंका पूरी तरह निरस्त नहीं हो रही है। यह बजट पूरी तरह वित्त मंत्री का

मोदी सरकार का चौथा बजट लोकसभा में पेश किया जा चुका है। पहली बार आम बजट के साथ रेल बजट के प्रस्ताव भी रखे गए हैं। ऐसा 1924 के बाद हुआ है। अलबत्ता 1924 से 2016 तक रेल बजट अलग से ही पेश करने की परंपरा रही है। बहरहाल हम यह विमर्श नहीं करेंगे कि

चिकित्सा व शिक्षा को राजनीतिक तिजोरियों में भरने की हमेशा से हिमाचल में प्रतियोगिता रही है और इसी आधार पर विभिन्न सरकारों ने खुद को साबित किया। हम राजनीति के इस पहलू को नकार नहीं सकते, फिर भी जिस मुकाम पर घोषणाओं के रथ खड़े हैं, वहां कुछ फैसले शिक्षाविदों या विषय विशेषज्ञों के अनुभव

बंटा घर, बंटे रिश्ते, बंटी पार्टी और बंटे नेतृत्व के बावजूद कोई गठबंधन स्थिर और सार्थक हो सकता है? सपा-कांग्रेस के गठबंधन पर ‘नेताजी’ मुलायम सिंह यादव ने जिस तरह करवट बदली है, उसके मद्देनजर सवाल स्वाभाविक है कि क्या सपा के पुराने नेता, कार्यकर्ता कांग्रेस कोटे की 105 सीटों पर चुनाव में उतरेंगे? क्या

प्रदेश के बागबानी विभाग ने सेब की गुणवत्ता के लिहाज से अवैध तरीके से पौधे उगाकर धोखाधड़ी करने वालों के खिलाफ एक मुहिम छेड़ी है। ब्लॉक स्तर पर समितियों के मार्फत यह सुनिश्चित होगा कि कहीं कोई अवैध तरीके से बागबानों की मेहनत का चूरमा न कर दे। किसान-बागबान की मेहनत चुराने की पहली कोशिश

साइकिल के दो पहिए…गंगा-यमुना सरीखा गठबंधन…अवसरवादी के बजाय विकासवादी गठबंधन…लेकिन गठबंधन और अखिलेश-राहुल की साझा सियासत पर मौन ‘नेताजी’ मुलायम सिंह यादव…कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं ही ‘नेताजी’ खामोश नहीं रहते। बाद में बोले भी, तो गठबंधन के खिलाफ। सपा के अखिलेश यादव और कांग्रेस के राहुल गांधी ने साझा प्रेस कान्फ्रेंस कर और

भीगते मौसम में भागती जिंदगी का रिश्ता अगर हिमाचल की हकीकत है, तो बारिश के बीच सलामी लेते मंत्रियों की दिलेरी का चित्रण क्या साबित करता है। अपनी छवि के परिमार्जन में हिमाचली नेताओं का सोशल मीडिया में इस तरह का जिक्र फौजी पृष्ठभूमि के राज्य की गरिमा के विरुद्ध ही माना जाएगा। राष्ट्रीय पर्व

संसद का बजट सत्र 30 जनवरी से शुरू हो रहा है। पहले दिन आर्थिक समीक्षा को पेश करने के बाद पहली फरवरी को बजट प्रस्ताव सार्वजनिक किए जाएंगे। 2017-18 का बजट कैसा होगा, फोकस क्या रहेगा, लोकलुभावन घोषणाएं होंगी या नहीं, देश का वित्तीय घाटा कितना होगा, इन तमाम पहलुओं का सच बजट पेश करने

देश का 68वां गणतंत्र भी हमने जी लिया। इस दिन कुछ भी याद नहीं रहता। कोई राग-द्वेष, विषाद नहीं। चारों ओर जुनून, बलिदानी, हौसलों और शुभकामनाओं का ही माहौल…! परिभाषाओं में हम सभी भारतीय गणतंत्र के हिस्सा हैं। यह गण और तंत्र हमने ही बुना है, उसे स्थायित्व दिया है और बार-बार चुनावों, सरकारों, संविधान,