वैचारिक लेख

मैं उनके काव्य संग्रहों के चौके छक्कों का घायल हूं। दो साल पहले वे पता नहीं कविता के आसमान में कहां से पुच्छल तारे की तरह अवतरित हुए औ फिर देखते ही देखते कविता के जगत में उन्होंने वह कहर बरपाया कि...वह कहर बरपाया कि...अब तो उनके काव्य संग्रह सौष्ठव को देख कबीर-तुलसी भी दांतों तले अंगूठा दबाने को विवश हैं। आह! हिंदी जगत में ऐसा कवि सदियों के बाद पैदा होता है जिसके नख शिख से कुछ झरता है तो बस काव्य संग्रह। मैं बापुरो! इधर एक कविता लिखने को भी महीनों लगा देता हूं। कविता होती है कि लाख जोर मारने के बाद भी पेट से बाहर आने से साफ मना कर देती है। कई बार तो वे मेरी कवि

आज दिन तक आवंटित भूमि पर हक हासिल करने के किए कई लोग मुकद्दमों में उलझे हुए हैं। जबकि परियोजना 70 के दशक में पूरी हो गई थी और पंजाब, राजस्थान को पानी और बिजली मिलने लग गई थी। किन्तु हिमाचल के हित आज तक फंसे हुए हैं। केंद्र सरकार को भी इस ओर ध्यान देकर निर्णय करवाना चाहिए, किन्तु वहां से भी चुप जैसी स्थिति क्यों बनी रहती है, समझ से परे है। ताजा मामला

अपनी ऋण जाल कूटनीति के माध्यम से चीन बीआरआई में भाग लेने वाले देशों से प्रमुख रणनीतिक संपत्ति और स्थान छीनने में सक्षम हो गया है। इसलिए इसे रोकने की जरूरत थी...

सरकार हो तो ऐसी। जो न केवल अपने कर्मचारियों के इहलोक की चिंता करे बल्कि उनके परलोक के लिए भी ऐसे कल्याणकारी क़दम उठाए कि आने वाली पीढिय़ाँ भी अश-अश कर उठें। न उन्हें अपने सगे सम्बन्धियों की तेरहवीं की चिंता हो, न मासिक श्राद्ध की, न बरसी और न चतुर्वार्षिक श्राद्ध की। अगर कोई राज्य सरकार किसी के पिता या दादा के ज़रिए उन्हें बरसों तक किश्तों में मिलने वाले पे एरियर का बंदोबस्त कर दे तो हो सकता है कि वह उनकी बड़ी सी तस्वीर न केवल अपने घर के ड्राईंग हाल में लगाए बल्कि वह उन्हें अपना इष्ट देव भी मानने लगे। आज़ादी के इस अमृत काल में जब बेरोजग़ारी और महंगाई से जूझता आम

नैनीताल उत्तराखंड का एक रमणीय पर्यटन स्थल है जो 1939 मीटर की ऊंचाई पर बसा है। यहां की नैनी झील के चारों ओर फैली पहाडिय़ों के कारण यह एक कटोरेनुमा शहर है। इस सुंदर शहर की खोज कुछ अंग्रेजों ने 1839 में की थी जब वे किसी कार्य से घूमते हुए यहां पहुंचे थे। वर्ष 1841 में बेंटन तथा बेरन नामक दो अंग्रेजों ने इसे बसाने का कार्य प्रारंभ किया एवं 1842 में यहां 10 मकान स्थानीय सामग्री से बनाए। यहां के प्राकृतिक सौंदर्य से आकर्षित हो अंग्रेज यहां धीरे-धीरे बसने लगे एवं 1901 तक यहां की आबादी 7500 के लगभग हो गई। वर्तमान में इसकी आबादी 80 हजार के आसपास है एवं इतने ही पर्यटक यहां गर्मी के मौसम में प्रति स

हम उम्मीद करें कि हाल ही में डब्ल्यूटीओ के 13वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में जिस तरह भारत ने खाद्य सुरक्षा व एमएसपी का मुद्दा प्रभावी तरीके से उठाया है, उससे दुनिया के अन्य देशों का समर्थन बढ़ेगा और इसका स्थायी समाधान होगा। साथ ही हाल ही में लांच की गई बड़ी खाद्यान्न भंडारण योजना से लाभ मिलेगा...

यदि शिक्षक के शैक्षणिक कार्य यूं ही प्रभावित होते रहे तो ‘भविष्य’ अनेक चिंताओं का जन्मदाता बनकर रह जाएगा। शैक्षणिक संस्थानों व शिक्षा में हर स्तर पर नैतिक मूल्यों का पतन भी गंभीर चुनौती है। शिक्षा बोर्ड, शिक्षा विभाग व सरकार को अब सचेत होना होगा...

भारत में पहचान बनाने के लिए लोग मरने का इंतजार करते हैं। हम जिंदा लोगों को पहचानें या मरने पर शव स्तुति के माहिर लोगों में गिने जाएं। हमारा सारा ज्ञान शमशानघाट की चारदीवारी में आकर तरोताजा हो जाता है। बुद्धिजीवी का वैचारिक जीवन यूं तो मरा सा है, लेकिन जब कोई मरता है तो वह चर्चाओं में खुद के होने का अहसास कर लेता है। यूं तो रूटीन में वह अखबारें पढक़र अधमरा हो जाता है और समाचार चैनल सुनते-सुनते सुध-बुध खो बैठता है। वह कई बार महसूस करता है कि बुद्धि का अगर गुरुत्वाकर्षण होता भी तो चैनलों के एंकर उसे टिकने नहीं देते। वह जब देश से कतराना चाहता है तो चैनल पर चर्चा सुन लेता है। चंद्रया

बर्तानिया हुकूमत का सूर्यास्त होने के बाद यदि हिंदोस्तान के फलक पर मगरिब के बादल मंडरा रहे हैं तो इस तहजीब की वजाहत में बालीवुड ने एक मखसूस किरदार अदा किया है। भारतीय संस्कृति व संस्कारों को दूषित करने वाली पश्चिमी तहजीब सिनेमा के जरिए ही सामाजिक परिवेश में दाखिल हुई है...