वैचारिक लेख

कृपया मेरा नाम किसी के साथ न जोड़ा जाए। न तो मैं सीधी तरह उधर हूं और न ही सीधी तरह इधर हूं। मैं बीच में हूं और समय की धार देख रहा हूं। आप यूं भी कह सकते हैं कि मैं तटस्थ आदमी हूं।

आठ मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर महिलाओं द्वारा हासिल की गई सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक सफलताओं का जश्न मनाना जरूरी है, ताकि हर महिला में कुछ नया करने की संजीवनी भर जाए, उनमें नए पंख लग जाएं

मथुरा कन्हैया लाल (श्रीकृष्ण) आ तो गए, लेकिन उनका मन होली के आते ही व्याकुल हो उठा। राधा तथा अन्य गोपियों की याद उन्हें सताने लगी। उद्धव से बोले- ‘उद्धव, मोहे ब्रज बिसरत नाहीं’। उद्धव बोले- ‘भगवन् आपने ही मथुरा आने की जल्दबाजी की। अभी आप कह रहे हैं कि आप ब्रज को भुला नहीं पा रहे हैं। ब्रज को भुलाना संभव भी नहीं है। आपने वहां वर्षों रास रचाया है। गोपियों की दही-मक्खन की मटकियां फोड़ी हैं और होली पर खूब गुलाल-अबीर उड़ाया है। मैंने तो आपसे कहा भी था कि मथुरा होली के बाद चलेंगे

तब उन्होंने ‘ममता बनर्जी’ वाला सूत्र अपनाया। शाहजहां को सीबीआई को नहीं दिया। जो करना हो, कर लो। सारा बंगाल देख रहा है। आखिर ममता बनर्जी शाहजहां को इस सीमा तक जाकर भी क्यों बचाना चाहती हैं? यह प्रश्न शेषनाग की तरह फन तान कर उसके सामने खड़ा है। ममता बनर्जी को किस बात का डर है? दूसरे दिन हाई कोर्ट फिर आदेश देता है। शाहजहां को बंगाल पुलिस की सुरक्षा से निकाल कर सीबीआई को सौंप दिया जाए। लगता है हाईब्रिड तक ममता सरकार के शाहजहां को बचाने के सारे हथियार खत्म हो गए हैं। आखिर शाहजहां सीबीआई की कस्टडी में पहुंच गया है। सुना है इसको लेकर ममता बहुत बड़ी रैली करने जा रही हैं

स्पिरिचुअल हीलिंग कोई जादू-टोना नहीं है, कोई अंधविश्वास नहीं है, बल्कि एक प्रभावी टूल है जो हमारे दिल, दिमाग और आत्मा से कूड़ा चुनकर उसे निर्मल बना देती है। स्पिरिचुअल हीलिंग की सबसे बड़ी खूबी यह है कि स्पिरिचुअल हीलर को आपकी उंगली भी छूने की आवश्यकता नहीं है और यह ऑनलाइन भी हो सकती है। मैं मीडिया घरानों का शुक्रगुजार हूं कि उनकी सीख के कारण परमात्मा ने मुझ पर कृपा की और स्पिरिचुअल हीलर बनकर समाज सेवा करने के काबिल हो सका। जीवन की यह समझ मुझे ‘दिव्य हिमाचल’ स

सरकारी स्तर से बढक़र पारिवारिक एवं सामाजिक स्तर पर सभी संस्थाओं के सक्रिय सहयोग से ही महिला उत्थान व महिला सम्मान को सुनिश्चित बनाया जा सकता है। बातें कहने भर से नारी सम्मानित नहीं होगी...

चुनाव करीब हैं और नेता जी अपने शासनकाल की सफलता का लेखा-जोखा करने चले हैं। पिछली बार जब चुनाव जीते थे, उन्होंने वायदों के लाल गालीचे बिछा दिए थे। कहा था, वायदे का पक्का हूं, अपने शासनकाल में एक भी आदमी भूख से मरने नहीं दूंगा। एक भी बेकार को नौकरी के लिए छटपटाने नहीं दूंगा। लोगों के दफ्तरी काम चौबीस घंटे में करवा देने का वायदा तो पुरानी बात है, अब नई बात यह कि सरकारी कारिंदा आपके घर से आपके काम की गुजारिश नहीं, आप से काम का हुक्म लेकर जाएगा, और काम पूरा करने की सूचना सरकारी हस्ताक्षर सहित आपके घर पहुंचा कर दम लेगा। यह वायदा केवल एक सूबे से नहीं मिला था, जहां-जहां जिस सूबे में नए चुना

आज के विश्वविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयीय शिक्षा की अनेक समस्याएं हैं जिन पर शासन तथा शिक्षाविदों का ध्यान केंद्रित है। माध्यमिक स्तर पर शिक्षा के प्रसार के कारण विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ रही है और प्रश्न यह है कि क्या विश्वविद्यालय उन सभी विद्यार्थियों को स्थान दें, जो आगे पढऩा चाहते हैं, अथवा केवल उन्हीं को चुनकर लें जो उच्च शिक्षा से लाभ उठाने में समर्थ हों? शिक्षा का माध्यम क्या हो, यह भी एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। शोध कार्य को प्रश्रय न देने की समस्या

महिलाओं की सुरक्षा के लिए सरकारों ने सराहनीय कदम उठाए हैं, परंतु और कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है। महिला दिवस 2024 का थीम है, ‘इंस्पायर इंक्लूजन’। जब हम दूसरों को महिलाओं के समावेशन को समझने और महत्व देने के लिए प्रेरित करते हैं तो हम एक बेहतर दुनिया का निर्माण करते हैं, जब महिलाओं को स्वयं शामिल होने के लिए प्रेरित करते हैं तो अपनापन है...