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डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं आम जनता की नजर से इन स्वतंत्रता सेनानियों और उनके परिवारों को गिराने के लिए अंततः सिनेमा का सहारा लिया गया। सिनेमा की पहुंच दूर-दूर तक है और प्रत्यक्ष दिखाई गई चीज का आम जनता पर गहरा असर होता है। संजय लीला भंसाली

प्रो. एनके सिंह ( लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं ) कई समीक्षक सवाल करते हैं कि क्या इस तरह से ट्रंप सफल हो पाएंगे, लेकिन अब वह सत्ता में हैं और वही करेंगे जो उन्होंने कहा था। ट्रंपवाद के उदय से समूचा वैश्विक परिदृश्य बदल रहा है। यह तो आने वाला

भूपिंदर सिंह ( लेखक, राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक हैं ) करोड़ों की अंतरराष्ट्रीय खेल सुविधा के रखरखाव के लिए आज कोई भी कर्मचारी दिखाई नहीं देता है। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने सत्ता में आते ही घोषणा की थी कि राज्य में खेल प्राधिकरण बनाया जाएगा, मगर अब इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी इस पर

भानु धमीजा ( भानु धमीजा सीएमडी, ‘दिव्य हिमाचल’ ) लेखक, चर्चित किताब ‘व्हाई इंडिया नीड्ज दि प्रेजिडेंशियल सिस्टम’ के रचनाकार हैं चुनावों पर आधारित एक देश में चुनावों की संख्या कम करना कुछ विचित्र है। क्या भारत के लोकतंत्र से भी अधिक महत्त्वपूर्ण कुछ और है? अकसर चुनाव होना हमारी ताकत होनी चाहिए। हमने केंद्र

डा. भरत झुनझुनवाला ( लेखक, आर्थिक विश्लेषक  एवं टिप्पणीकार हैं ) केंद्र सरकार के खर्चों को पूंजी एवं राजस्व श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है। पूंजी खर्चों में राफेल फाइटर प्लेन की खरीद, नई रेलवे लाइनों को बिछाना तथा हाई-वे बनाना आदि शामिल है। इनका विस्तार कम ही हुआ है। सरकार द्वारा जारी मिड टर्म

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री ( डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं ) सभी जानते हैं कि जायरा का माफीनामा घाटी की वर्तमान यथार्थ हालात में से निकला है। इस हालात में यह माफीनामा ही निकल सकता है और कुछ नहीं, लेकिन इस माफीनामा को जायरा की कायरता न समझ कर, उसकी बुद्धिमत्ता मानना

पीके खुराना ( पीके खुराना लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं ) चुनाव के समय विज्ञापनों का लालच मीडियाकर्मियों के हाथ बांध देता है और इस सारी प्रक्रिया में उनकी भूमिका अप्रासंगिक हो जाती है। ऐसे में हमारे सामने एक ही उपाय है कि मतदाता के रूप में हम जागरूक हों, दूरदर्शी बनें और

भानु धमीजा सीएमडी, ‘दिव्य हिमाचल’ लेखक, चर्चित किताब ‘व्हाई इंडिया नीड्ज दि प्रेजिडेंशियल सिस्टम’ के रचनाकार हैं वर्ष 1963 में न्यायमूर्ति सरकारिया, जिन्हें केंद्र-राज्य संबंधों के अध्ययन को नियुक्त किया गया था ने रिपोर्ट दी कि ‘‘केंद्र शक्ति के नशे में चूर’’ था। यही समय था कि भारत ‘मजबूत’ केंद्रीकृत सरकार के विचार को निकाल

डा. भरत झुनझुनवाला ( लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं ) छोटे उद्योगों की मुख्य समस्या टैक्स दरों की है। इसे सुलझाने के बाद ही अन्य कदमों की सार्थकता है। सरकार को समझना चाहिए कि छोटे उद्योग देश की अर्थव्यवस्था में अहम सार्थक भूमिका निभाते हैं। पर्यावरण सुरक्षा के लिहाज से भी लघु उद्योग, बड़े