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30 दिसंबर रविवार, पौष, कृष्णपक्ष, नवमी 31 दिसंबर सोमवार, पौष, कृष्णपक्ष, दशमी 1 जनवरी मंगलवार, पौष,  कृष्णपक्ष, एकादशी, सफला एकादशी व्रत 2 जनवरी बुधवार,  पौष,  कृष्णपक्ष, द्वादशी 3 जनवरी बृहस्पतिवार, पौष,  कृष्णपक्ष, त्रयोदशी 4 जनवरी शुक्रवार, पौष, कृष्णपक्ष, चतुर्दशी 5 जनवरी शनिवार, पौष, कृष्णपक्ष, अमावस, पौष अमावस

नोबूनागा एक महान जापानी सेना नायक था। एक बार उसे दुश्मन फौज पर धाबा बोलना था। मगर उसकी सेना में दुश्मन फौज के मुकाबले उसका दसवां हिस्सा भर सैनिक थे। नोबूनागा अपनी जीत को लेकर निश्चिंत था। उसके सिपाही संदेहों से घिरे थे। कूच के रास्ते नोबूनागा की सेना ने एक जेन मंदिर के पास

मेरी आप सबसे एक विनती है कि परम कृपालु परमात्मा विश्वकर्मा को तुम सब निष्काम होकर भजो, तो आपके लिए भी इस संसार में कुछ भी अलभ्य नहीं है। कारण कि जिसके पास प्रभु स्वयं रहते हैं उसको अलभ्य क्या होगा। इस प्रकार कह कर विश्वावसु अपने आसन के ऊपर बैठ गए। राजा भी अत्यंत

गतांक से आगे… आकाश गंगा तीर्थ का वर्णन करते हुए पुराणकार विष्णु और रामानुजाचार्य की भेंट कराते हैं। रामानुजाचार्य वैष्णव संप्रदाय के संस्थापक थे। राम की पूजा सारे भारत में स्थापित करने का श्रेय इन्हें जाता है। भगवान विष्णु रामानुजाचार्य को स्वयं बताते हैं कि सूर्य की मेष राशि में चित्रा नक्षत्र से युक्त पूर्णिमा

बाबा हरदेव अतः जो वक्त के पूर्ण सद्गुरु के आदेश (हुक्म) को सिर माथे पर रखकर जीवन व्यतीत करने की कला सीख लेता है, वही ‘तथाता’ के असल अर्थ को समझ पाता है। देश काल ते समें मुताबक सतगुर जिवे चलांदा ए। हुकम एहदा सिर मत्थे धर के गुरसिख चलदा जांदा ए। मानो जिसका कहीं

सदगुरु  जग्गी वासुदेव कर्म का अर्थ होता है गतिविधि। इस वक्त यहां बैठे हुए हमारी गतिविधि चार आयामों में हो रही है भौतिक, मानसिक, भावनात्मक और ऊर्जा के स्तर पर। आज आपके जागने के पल से इस पल तक इन चारों कर्मों में से कितनों के प्रति आप जागरूक रहे हैं? आप नहीं गिन पा

नचिकेता- आपने स्वर्ग की स्त्रियों का जो विशेष रूप से वर्णन किया, वह कामी अथवा विषयीजनों को ही आकर्षित कर सकता है। अन्यथा मनुष्य लोक की स्त्री भी उनके समान हो होती है। अगर विचार पूर्वक देखा जाए, तो देवता, मनुष्य और पशु आदि इन सब की स्त्रियां उनके पुरुष की दृष्टि में सबसे अधिक

-गतांक से आगे… उग्र-चंडेश्वरी वीर-जननी वीर-सुंदरी। उग्र-तारा यशोदाख्या देवकी देव-मानिता।। 78।। निरंजना चित्र-देवी क्रोधिनी कुल-दीपिका। कुल-वागीश्वरी वाणी मातृका द्राविणी द्रवा।। 79।। योगेश्वरी-महा-मारी भ्रामरी विंदु-रूपिणी। दूती प्राणेश्वरी गुप्ता बहुला चामरी-प्रभा।। 80।। कुब्जिका ज्ञानिनी ज्येष्ठा भुशुंडी प्रकटा तिथिः। द्रविणी गोपिनी माया काम-बीजेश्वरी क्रिया।। 81।। शांभवी केकरा मेना मूषलास्त्रा तिलोत्तमा। अमेय-विक्रमा व्रूसरा सम्पत्शाला त्रिलोचना।। 82।। सुस्थी हव्य-वहा प्रीतिरुष्मा

स्वामी विवेकानंद गतांक से आगे… यहां भाषण विस्तारपूर्वक उद्धृत किया गया है। उन्होंने गिरजे और क्लबों में इतनी बार उपदेश दिया है कि उनके धर्म से अब हम भी परिचित हो गए हैं। उनकी संस्कृति, उनकी वाक्पटुता, उनके आकर्षक एवं अद्भुत व्यक्तित्व ने हमें हिंदू सभ्यता का एक नया आलोक दिया है। उनके सुंदर तेजस्वी