आस्था

– डा. जगीर सिंह पठानिया सेवानिवृत्त संयुक्त निदेशक, आयुर्वेद, बनखंडी रामतोरी के फायदे रामतोरी को घी तोरी या धप्पल भी कहते हैं। इसका बेलनुमा पौधा होता है। इसकी बेल धरती पर भी फैलती है तथा वृक्षों पर भी चढ़ती है व इसको फैलने के लिए खुद भी वन वगेरा बनाया जाता है। इसका फल लगभग

श्रीलंका में एक ऐसा मंदिर है, जहां मुख्य रूप से सीता माता की पूजा-अर्चना होती है। इस मंदिर में सीता माता की भव्य प्राण प्रतिमा प्रतिष्ठित है। यहां के तमिल भाषी लोग न हिंदी बोल पाते हैं और न ही हिंदी समझ पाते हैं, फिर भी यहां हनुमान चालीसा पढ़ी व गुनगुनाई जाती है। साथ

हिंदू धर्म में गोमती नदी का बड़ा महत्त्व है। हमारी पांच सबसे पवित्र नदियों में से एक गोमती भी है। मान्यता है कि गोमती महर्षि वशिष्ठ की पुत्री थी जो बाद में नदी के रूप में परिणत हो गई। इसी पवित्र नदी के अंदर एक विशेष पत्थर पाया जाता है जिसे हम गोमती चक्र के

 गोवर्धन परिक्रमा का हिंदू धर्म में बड़ा ही महत्त्व है। हिंदुओं का प्रसिद्ध तीर्थस्थल गोवर्धन, मथुरा से 26 किलोमीटर पश्चिम में डीग हाईवे पर स्थित है। कहा जाता है कि यहां के कण-कण में भगवान श्रीकृष्ण का वास है। यहां एक प्रसिद्ध पर्वत है जिसे ‘गोवर्धन पर्वत’ अथवा ‘गिरिराज’ कहा जाता है। यह पर्वत छोटे-छोटे

-गतांक से आगे… दशलीलाविहाराय सप्ततीर्थविहारिणे। विहाररसपूर्णाय नमस्तुभ्यं कृपानिधे॥ 22॥ दशावतार रूप लीला में विहार करने वाले तथा मथुरा के जमुना, जन्मभूमि व्रज आदि सप्त तीर्थों में विचरण करने वाले, विहार के रस से पूर्ण और तुम कृपा के निधान कृष्ण को नमस्कार है॥ 22 ॥ विरहानलसन्तप्त भक्तचित्तोदयाय च। आविष्कृतनिजानन्दविफलीकृतमुक्तये॥ 23॥ (कृष्ण के) विरह की अग्नि

भारत प्राचीन किलों और स्मारकों का देश माना जाता है। जो आज भी अपनी गहरी प्रगति के अतीत का वर्णन करते हैं। उनमें एक प्रसिद्ध कांगड़ा किला जो हिमाचल प्रदेश की खूबसूरत घाटी में बाणगंगा और माझी नदियों के संगम पर स्थित है। प्रसिद्ध कांगड़ा किला भारत का सबसे पुराना किला है। प्राचीन काल में

द्वारका में द्वारिकाधीश मंदिर के अतिरिक्त श्री कृष्ण जी का एक और भी भव्य मंदिर है, जो उनसे जुड़ी एक रोचक कथा का प्रतीक है, जिसके चलते इस मंदिर को रणछोड़ जी महराज मंदिर के नाम से पुकारा जाता है। यहां गोमती के दक्षिण में पांच कुएं हैं। निष्पाप कुंड में नहाने के बाद यहां

गतांक से आगे… इसी संबंध में बातचीत हो रही थी कि स्वामी  रामकृष्णानंद जी के पिता शाक्त, तांत्रिक पंडित ईशानचंद्र भट्टाचार्य महोदय मठ में पधारे। उन्हें देखकर स्वामी जी बहुत प्रसन्न हुए। पंडित जी के साथ परामर्श करने के बाद स्वामी जी ने स्वामी शुद्धानंद और बोद्धानंद जी को पूजा की सामग्री जुटाने का आदेश

प्रारब्ध कमर् वह है जो मनुष्य को इस जमा की हुई राशि में से एक जन्म के भोगने के लिए अर्थात उम्र भर के खर्च के तौर पर मिलती है और इस राशि को हर जन्म के शुरू में ही कुल राशि के भंडार में से प्रकृति के नियम के अनुसार अलग किया जाता है।