आस्था

हिमाचल प्रदेश अपनी समृद्ध संस्कृति, विभिन्न मेले, उत्सव और त्योहारों के लिए प्रसिद्ध है। ये सारे त्योहार जहां हम सबको हमारे अपनो से जोड़े रखने का काम करते हैं, वहीं हिमाचली जनता के लिए एक रोजगार का काम भी कर रहे हैं। हिमाचल में यूं तो साल भर बहुत से त्योहार मनाए जाते हैं और

भारतीय पंचांग (खगोलीय गणना) के अनुसार प्रत्येक तीसरे वर्ष एक अधिक मास होता है। यह सौर और चंद्र मास को एक समान लाने की गणितीय प्रक्रिया है। शास्त्रों के अनुसार पुरुषोत्तम मास में किए गए जप, तप, दान से अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है। सूर्य की बारह संक्रांति होती हैं और इसी आधार पर

सर्वपितृ अमावस्या आश्विन माह की अमावस्या को कहा जाता है। आश्विन माह का कृष्ण पक्ष वह विशिष्ट काल है जिसमें पितरों के लिए तर्पण और श्राद्ध आदि किए जाते हैं। यद्यपि प्रत्येक अमावस्या पितरों की तिथि होती है, किंतु आश्विन मास की अमावस्या पितृपक्ष के लिए उत्तम मानी गई है। इस अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या

महाराष्ट्र का अंबरनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित है इसे अंबरेश्वर नाम से भी जाना जाता है। यहां के निवासी इस मंदिर को पांडव कालीन मानते हैं। यह प्राचीन हिंदू शिल्पकला की अद्भुत मिसाल है। ग्यारहवीं शताब्दी में बने अंबरनाथ मंदिर को यूनेस्को ने सांस्कृतिक विरासत घोषित किया है। मंदिर में मिले एक शिलालेख के

विश्वकर्मा पूजा 16-17 सितंबर को मनाई जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल विश्वकर्मा पूजा कन्या संक्रांति को होती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। विश्वकर्मा देव को दुनिया का सबसे पहला इंजीनियर माना जाता है। कहते हैं प्राचीन काल की सभी राजधानियों का निर्माण भगवान विश्वकर्मा

-गतांक से आगे… मायाप्रपञ्चदूराय नीलाचलविहारिणे। माणिक्यपुष्परागाद्रिलीलाखेलप्रवर्त्तिने॥ 18॥ मायाप्रपञ्च (की परिधि) से दूर रहने वाले, नीलाचल (जगन्नाथ पुरी)में विहार करने वाले तथा माणिक्य एवं पुष्पराग के अद्रि की लीला आदि खेलों को करने वाले कृष्ण को नमस्कार है॥ 18 ॥ चिदन्तर्यामिरूपाय ब्रह्मानन्दस्वरूपिणे। प्रमाणपथदूराय प्रमाणाग्राह्यरूपिणे॥ 19॥ चित् रूप से अंतरात्मा में रहने वाले, ब्रह्मानंद स्वरूप, प्रत्यक्षादि प्रमाणों

बाबा हरदेव महात्माओं ने कर्म तीन प्रकार के बताए हैं संचित कर्म, प्रारब्ध कर्म व क्रियमाण कर्म।  संचित कर्म- मनष्य वह प्राणी है, जिसकी सूक्ष्म शरीर रूपी कोठरी में विभिन्न प्रकार के संस्कार भरे पड़े रहते हैं और ये संस्कार जन्म-जन्मांतर के एकत्रित हैं, क्योंकि मनुष्य जो-जो कर्म करता है, वही संस्कार बनकर इसके सूक्ष्म

श्रीराम शर्मा  मनुष्य में एक बुरी आदत है काम को टाल देने की। अपनी इसी आदत के कारण हम कभी-कभी अपने बनते हुए कामों को बिगाड़ बैठते हैं। जिससे हमारी बड़ी भारी हानि हो जाती है और कभी-कभी तो अपनी मंजिल पर पहुंचते-पहुंचते रह जाते हैं। जिन पत्रों का उत्तर हमें आज देना चाहिए, उन्हें

श्रीश्री रवि शंकर  धैर्य के साथ सच्चाई की कामना करें फिर क्रोध हावी नहीं होगा। अन्यथा जब आप कहते हैं, मैं सच्चा हूं और फिर जब यह मांग करते हैं, मुझे यह चाहिए, फिर क्रोध आता है और जब क्रोध आता है फिर आप अपनी सच्चाई और अच्छाई को स्वयं ही गंवा देते हैं। जब