आस्था

एक स्थान में आपने श्वेतकेतु ऋषि की भी चर्चा की थी, जो आरंभिक अवस्था में विद्याध्ययन से विमुख रहकर भी अंत में महान ज्ञानी और आध्यात्म विद्या का उपदेश करने वाला हो गया। हम आपसे उसी उपासना को सुनना चाहते हैं। इस पर श्रीगुरुदेव कहने लगे। हे शिष्य! श्वेतकेतु अरुणि नामक ऋषि का पुत्र था।

ऐसे में यह जानना आपके लिए बहुत जरूरी है कि आखिर ऐसा हो क्यों रहा है। आमतौर पर अधिक समय तक एक्सरसाइज करने से सांसें तेज हो जाती हैं, कई लोगों को सीढि़यां चढ़ते वक्त सांस में दिक्कत की समस्या का सामना करना पड़ता है। कई बार ज्यादा तनाव में रहने के कारण भी ऐसी

हमारे ऋषि-मुनि, भागः 16 वैशम्पायन ने अपने सभी शिष्यों से कहा कि वे मिलकर उस अपराध का प्रायश्चित करें। इससे उन्हें सुगमता होनी थी। मगर उनके भांजे ने जोर देकर कहा, ये शिष्य अभी छोटे हैं। मैं अकेले ही प्रायश्चित कर लूंगा। इस पर वैशम्पायन को क्रोध आ गया। उन्होंने अपने द्वारा यजुर्वेद की जिन

मूर्ति को नमन कर मैं डोलमा का अनुसरण करता जा रहा था। अनेक भव्य कक्ष पार कर एक विशाल कक्ष में आया। संपूर्ण कक्ष बड़े-बड़े काले पत्थरों का बना था और उसमें इस प्रकार की व्यवस्था थी कि भरपूर प्रकाश आ रहा था। पत्थरों का काला चमकीला रंग प्रकाश के कारण कमरे को एक विचित्र-सा

स्वामी विवेकानंद गतांक से आगे… जब वो खेतड़ी पहुंचे, तो शाम हो चुकी थी, स्वामीजी के सम्मान में पूरे महल को दीपावली की तरह सजाकर दीपकों से प्रकाशित किया गया था। चारों ओर नाच-गाने का उत्सव चल रहा था। महाराज अपने मेहमानों और आसपास के राजाओं के साथ दरबार में बैठे थे, जैसे ही पहरेदारों

छोटी उम्र के लड़की और लड़के लगभग एक जैसे लगते हैं। कपड़ों से, बालों से उनकी भिन्नता पहचानी जा सकती है, अन्यथा वे साथ-साथ हंसते, खेलते-खाते हैं, कोई विशेष अंतर दिखाई नहीं पड़ता, पर जब बारह वर्ष से आयु ऊपर उठती है तो दोनों में काफी अंतर अनायास ही उत्पन्न होने लगता है। लड़के की

गोरखनाथ का चमत्कार देखकर  कणीफानाथ को बहुत आश्चर्य हुआ। उन्हें बिलकुल भी विश्वास नहीं था कि टूटे  हुए फल वापस वृक्षों पर लग सकते हैं। कणीफानाथ को अपने व्यवहार पर बहुत ग्लानि हुई। वह अच्छी तरह समझ गए कि मैं गोरखनाथ से विद्या बुद्धि में काफी पिछड़ा  हुआ हूं। मेरे गुरु ने सच ही कहा

श्रीश्री रवि शंकर प्रकृति में हर क्षण अनंत सहजता और रचनात्मकता प्रकट होती रहती है। हर सुबह सूर्य उदय होता है पर प्रतिदिन सूर्योदय कुछ अलग प्रकार से सुंदर होता है। यदि हम जीवन के अनुभवों को देखें, तो हर रोज सब कुछ एक जैसा होते हुए भी भिन्न होता है, यह एक सच्चाई है।

एक ज्ञान पिपासु साधिका ने अपने हाथों से बुद्ध की मूर्ति बनाई और उसे स्वर्णिम वस्त्र में लपेट दिया। साधिका जहां जाती, अपनी बुद्ध मूर्ति को हमेशा साथ रखती। एक बार साधिका एक आश्रम में ठहरी हुई थी। आश्रम में अनेक बुद्ध मूर्तियां थीं। साधिका ने अपनी बुद्ध मूर्ति के सम्मुख अगरबत्ती जलानी चाही। इस