संपादकीय

मालदीव का अस्तित्व ही क्या है? उसकी धडक़नें, सक्रियता, स्थिरता, शेष लोकतंत्र और बुनियादी अर्थव्यवस्था सिर्फ भारत की बदौलत है। मालदीव ने पानी मांगा, तो भारत ने उसकी प्यास बुझाई।

विपक्ष अक्सर तानाशाही शासन की बात करता रहता है। उसे लोकतंत्र और संविधान बचाने की घोर चिंता है, जबकि दोनों ही बेहद सुरक्षित हैं। विपक्ष प्रधानमंत्री मोदी के कालखंड को ‘अघोषित आपातकाल’ करार देता रहा है। विपक्षी नेता और मुख्यमंत्री प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के समन नोटिसों को खारिज कर रहे हैं। विपक्ष की शिकायत है कि मोदी सरकार जांच एजेंसियों को, विपक्षी नेताओं के खिलाफ, एक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है, जबकि सत्ता-पक्ष के कई केंद्रीय मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों पर घोटालों के गंभीर आरोप हैं। ईडी, सीबीआई, आयकर विभाग उन पर छापे की कार्रवाई नहीं कर सकते। मोदी सरकार विपक्षी नेताओं को जेल में डाल कर उन्हें चुनाव प्रचार से वंचित रखना चाहती है, ताकि भाजपा-एन

यह सिर्फ सार्वजनिक संपत्ति को लेकर आया कानूनी फैसला नहीं, बल्कि राज्य की अमानत में सरकार के दायित्व को भी रेखांकित करता है। अंतत: दो दशकों बाद राज्य की अमानत राज्य के पास लौटी और इस तरह वाइल्ड फ्लावर हॉल हिमाचल का हो गया। माननीय हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में ओबरॉय ग्रुप को स्पष्ट निर्देश देते हुए आगामी दो महीने के भीतर इसे पुन: हिमाचल सरकार के हवाले करने को कहा है। इस दौरान लेन-देन की औपचारिकताओं के बाद यह संपत्ति अंतत: हिमाचल पर्यटन विकास निगम के प्रीमियर होटल की तरह सामने आएगी।

भारतीय संस्कृति में हम सूर्य को ‘आराध्य देव’ मानते और पूजते आए हैं। बाल हनुमान और सूर्य की ‘मिथकीय कहानी’ आपने भी सुनी और पढ़ी होगी, लेकिन वैज्ञानिकों की जिज्ञासाओं, प्रयोगों और अनुसंधानों की सीमा अनंत है। वैज्ञानिक भी ‘सूर्य नमस्कार’ करते हैं, लेकिन वे सूर्य के भीतर के यथार्थ को भी जानना चाहते हैं। यही विज्ञान का मर्म है। इस संदर्भ में भारत के इसरो का ‘आदित्य एल-1’ सौर मिशन अपनी मंजिल तक पहुंचा है, यकीनन यह एक असाधारण और ऐतिहासिक उपलब्धि है। यह इसरो का प्रथम प्रयोग है, जिसने ‘लैंग्रेज प्वाइंट-1’ तक पहुंच कर और अपनी कक्षा

हिमाचल में गारंटियों के चक्रव्यूह में जनता हो न हो, विपक्ष ने गारंटी बनाम गारंटी का मुद्दा बनाकर सुक्खू सरकार के लिए आगामी लोकसभा चुनाव का पैमाना बता दिया है। नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने पुन: मोदी की गारंटी की विश्वसनीयता को सौ फीसदी मानदंड पर खरा साबित करने की कोशिश की है। यकीनन जनता की टोकरी में सियासी भीख के भी नखरे परवान हैं, वो मांगती है सुबह से शाम मुफ्त की रेवड़ी अलग-अलग जुबान। वैसे कांग्रेस के लिए यह परीक्षा राजस्थान में दर्द दे गई और ओपीएस पर खर्चा करके भी पार्टी मतदाता का एहसान प्राप्त नहीं कर रही है। हिमाचल

एक बार फिर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और सरकार की खरीद नीति का विश्लेषण जरूरी हो गया है, क्योंकि इन दोनों से, एक हद तक, कुछ खास फसलों को ही फायदा है। ये नीतियां बाजार में विकृतियां पैदा कर रही हैं। तेल के बीज और दालों के किसानों को दो स्तरों पर नीतिगत भेदभाव झेलना पड़ रहा है। उनके एमएसपी कागजों पर ही लिखे हैं, जबकि धान, गेहूं और गन्ने के साथ ऐसा नहीं है। इन फसलों को या तो सरकार प्रत्यक्ष तौर पर खरीदती है अथवा गन्ने के लिए चीनी मिलों को भुगतान करने को बाध्य करती है। राजस्थान में सरसों करीब 5000 रुपए प्रति

हिमाचल के वित्तीय हालात प्रदेश को फरियादी बना चुके हैं या हमने अपने अर्थतंत्र के तमाम सबूतों को केंद्र के पास गिरवी रख दिया। भले ही डबल इंजन सरकार के पहरावे में पूर्व सरकार के पांच साल निकल गए या अब व्यवस्था परिवर्तन की राह पर कांग्रेस सरकार की जद्दोजहद सामने आ गई, लेकिन पर्वतीय प्रदेश का वजूद अब केंद्र का खिलौना बना न•ार आ रहा है। केवल एक बार धूमल सरकार के वक्त में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने हिमाचल को गले लगाया और आगे बढऩे की प्रेरणा दी, अन्यथा ढोल-ढमाकों ने सिर्फ सियासी घों

चूंकि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन बार-बार प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के समन को ठुकरा रहे हैं, लिहाजा अंतिम परिणति जेल ही हो सकती है। केजरीवाल तीन बार और सोरेन 7 बार समन को खारिज कर चुके हैं। यह संविधान को अस्वीकार करना और उसका उल्लंघन करना ही है। केजरीवाल सरकार के दौरान ‘शराब घोटाला’ उछला और सोरेन 1000 करोड़ रुपए के अवैध खनन मामले में आरोपित हैं। सोरेन के खिलाफ चुनाव आयोग एक पत्र प्रदेश के राज्यपाल को भेज चुका है कि मुख्यमंत्री को बर्खास्त किया जाए और उनकी विधानसभा सदस्यता भी रद्द की जाए। यह बंद चि_ी एक लंबे अंतराल से राज्यपाल के विचाराधीन है। न जाने विचार की प्रक्रिया कितनी लंबी होती

सरकार के कार्य, सरकार की दक्षता और सत्ता में हिस्सेदारी के फलक पर मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति पर आया हाई कोर्ट का अंतरिम आदेश अपने आप में कई अर्थ लिए है। आदेश की पलकों पर सवार होकर भाजपा खुशियां मना सकती है, लेकिन सरकार की ये नियुक्तियां अभी यथावत हैं तो इसलिए कि माननीय अदालत ने इसके खिलाफ कोई टिप्पणी नहीं की। यानी बिना मंत्री पद की सुविधाओं, शक्तियों और भत्तों के अगर जहाज उड़ रहे हैं, तो सियासी फिजा में फिलहाल कोई खतरा नहीं। फैसले की वजह अभी बाकी है और निष्कर्षों का सामान भी। सरकार के गठन में