विचार

सरकारी स्तर से बढक़र पारिवारिक एवं सामाजिक स्तर पर सभी संस्थाओं के सक्रिय सहयोग से ही महिला उत्थान व महिला सम्मान को सुनिश्चित बनाया जा सकता है। बातें कहने भर से नारी सम्मानित नहीं होगी...

चुनाव करीब हैं और नेता जी अपने शासनकाल की सफलता का लेखा-जोखा करने चले हैं। पिछली बार जब चुनाव जीते थे, उन्होंने वायदों के लाल गालीचे बिछा दिए थे। कहा था, वायदे का पक्का हूं, अपने शासनकाल में एक भी आदमी भूख से मरने नहीं दूंगा। एक भी बेकार को नौकरी के लिए छटपटाने नहीं दूंगा। लोगों के दफ्तरी काम चौबीस घंटे में करवा देने का वायदा तो पुरानी बात है, अब नई बात यह कि सरकारी कारिंदा आपके घर से आपके काम की गुजारिश नहीं, आप से काम का हुक्म लेकर जाएगा, और काम पूरा करने की सूचना सरकारी हस्ताक्षर सहित आपके घर पहुंचा कर दम लेगा। यह वायदा केवल एक सूबे से नहीं मिला था, जहां-जहां जिस सूबे में नए चुना

सर्वोच्च अदालत की संविधान पीठ ने संविधान पीठ का ही फैसला बदल दिया। फर्क इतना था कि 1998 की पीठ पांच न्यायाधीशों की थी, जिसने ‘नरसिम्हा राव बनाम सीबीआई’ मामला सुना था और 3-2 न्यायाधीशों के बहुमत से फैसला सुनाया था। अब संविधान पीठ सात न्यायाधीशों की है। मुद्दा संविधान के अनुच्छेद 105 (2) और 194 (2) के तहत सांसदों और विधायकों के, सदन के भीतर, विशेषाधिकार का है। पहला केस झामुमो सांसदों को दी गई घूस का था, जिसके एवज में उन्होंने तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार के समर्थन में वोट दिए थे। वह अल्पमत सरकार थी और बहुमत के लिए कई सांसदों को ‘खरीदा’ गया था। विशेषाधिकार यह रहा है कि सांसद और विधायक सदन में अपना वोट बेच सकते थे। संविधान पीठ ने भी इसे ‘माननीयों’ का विशेषाधिकार करार दिया था। ऐसी घूस के लिए उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता था। यदि ‘माननीय’ रिश्वत ले

हिमाचल में सडक़ों की परिभाषा को सुदृढ़ता का पैगाम देते हुए केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने एक लाख करोड़ का खाका पेश किया है। यह दूसरी बार है कि गडकरी हमीरपुर आ कर सडक़ परियोजनाओं की महत्त्वाकांक्षा में हिमाचल को वरदान दे रहे हैं। इससे पूर्व पिछले लोकसभा चुनाव से पूर्व उन्होंने राष्ट्रीय उच्च मार्गों के साथ-साथ फोरलेन परियोजनाओं का हवाला दिया था। करीब चार हजार करोड़ की अधोसंरचना निर्माण की जमीन पर उद्घाटन व शिलान्यासों की श्रृंखला बना कर गडकरी एक साथ कई पैगाम व प्रतिबद्धता का सबूत देने से नहीं चूकते। हिमाचल की दृष्टि से सडक़ परिवहन की अनिवार्यता को इन परियोजनाओं के

हाल ही में अमरीकी थिंक टैंक ब्रुकिंग्स की रिपोर्ट में यह बताया गया है कि हमारे देश में गरीबी कम हो रही है और हमारा देश गरीबी से उबर रहा है। इस रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश के शहरी क्षेत्र और ग्रामीण क्षेत्रों में असामानता भी कम हुई है। यह हमारे देश के लिए अच्छी बात है कि गरीबी कम हुई है, लेकिन अभी भी

आज के विश्वविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयीय शिक्षा की अनेक समस्याएं हैं जिन पर शासन तथा शिक्षाविदों का ध्यान केंद्रित है। माध्यमिक स्तर पर शिक्षा के प्रसार के कारण विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ रही है और प्रश्न यह है कि क्या विश्वविद्यालय उन सभी विद्यार्थियों को स्थान दें, जो आगे पढऩा चाहते हैं, अथवा केवल उन्हीं को चुनकर लें जो उच्च शिक्षा से लाभ उठाने में समर्थ हों? शिक्षा का माध्यम क्या हो, यह भी एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। शोध कार्य को प्रश्रय न देने की समस्या

आम चुनाव की घोषणा हुई भी नहीं, लेकिन नेताओं के कीचड़ उछालने और आपत्तिजनक शब्द बोलने का सिलसिला शुरू हो गया है। प्रधानमंत्री मोदी के लिए पहले कांग्रेस ने खूब अपशब्द कहे हैं, लेकिन अब लालू यादव ने ऐसा मुद्दा उछाला है कि मोदी और भाजपा ने उसे लपक लिया है। लालू ने सार्वजनिक मंच से कहा है कि मोदी का अपना परिवार तो नहीं है, लिहाजा वह ‘परिवारवादी पार्टियां’ कहते रहते हैं। मोदी हिंदू भी नहीं हैं, क्योंकि मां के शोक में उन्होंने सिर नहीं मुंडवाया और न ही दाढ़ी साफ कराई। प्रधानमंत्री ते

महिलाओं की सुरक्षा के लिए सरकारों ने सराहनीय कदम उठाए हैं, परंतु और कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है। महिला दिवस 2024 का थीम है, ‘इंस्पायर इंक्लूजन’। जब हम दूसरों को महिलाओं के समावेशन को समझने और महत्व देने के लिए प्रेरित करते हैं तो हम एक बेहतर दुनिया का निर्माण करते हैं, जब महिलाओं को स्वयं शामिल होने के लिए प्रेरित करते हैं तो अपनापन है...

कल रात कोई मेरे सपने में आया। भद्रपुरुष नहीं, सिम्पल सा पुरुष। अंदर धंसी हुई आंखें। पिचका हुआ चेहरा। आते ही मुझे जगाते उस पुरुष ने कहा, ‘जागो मोहन प्यारे!’ पर मोहन प्यारे जागे तो कहां से जागे! सारा दिन तो इधर उधर पेट के चक्कर में मारा मारा फिरता रहता है सबके आश्वासनों की पोटली पेट पर उठाए। मैं काली भेड़ें बेच कर सोया, फिर भी नहीं जागा तो उस पुरुष ने फिर मुझे जगाने की कुचेष्टा की, ‘उठो माई डियर पोते!’ अबके मैं गुस्साया! हद है यार! मान न मान, मैं तेरा दादा महान! यहां तो वे भी दादा के मरने के बाद अपने दादा को नहीं पहचानते जिन्होंने जीते जी अपने दादा को देखा हो तो मैंने तो अपने दादा को उनके जिंदा जी देखा ही नहीं, तो कैसे मान