वैचारिक लेख

दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले, जहां से देश के प्रधानमंत्री राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं, की रक्षा भी यदि पुलिस न कर सके तो उससे आम जनमानस की सुरक्षा की क्या उम्मीद रखी जा सकती है। पुलिस उच्चकोटि के अपने चरित्र का प्रदर्शन करे… पुलिस को कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए विभिन्न प्रकार की प्रताड़नाएं

कर्नल (रि.) मनीष धीमान स्वतंत्र लेखक पेट्रोल का दाम 100 के आंकड़े को छू रहा है। किसान आंदोलन के भी 100 दिन होने जा रहे हैं। विपक्ष इसको सरकार की नाकामी बता रहा है, तो पक्ष इसके लिए भी विपक्ष की वर्षों से चली आ रही नीतियों को ही जिम्मेदार बता रहा है। इस सब

वर्तमान किसान आंदोलन में भी आम आदमी पार्टी की यही भूमिका है। उन्हें आशा थी कि किसान आंदोलन को समर्थन की आड़ में वे पंजाब में प्रभावी पार्टी बन कर उभरेंगे जिसका लाभ आने वाले विधानसभा चुनावों में लिया जा सकेगा। लेकिन पंजाब के लोगों ने शायद आम आदमी पार्टी को यह ख़तरनाक खेल खेलने

राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक विजेता बनने के लिए दस वर्षों से भी अधिक समय तक खिलाड़ी को समाज से दूर रह कर कठिन परिश्रम करना पड़ता है। इसलिए वह पढ़ाई के साथ-साथ सामाजिक व आर्थिक मोर्चे पर भी पीछे रह जाता है। काफी सोच-विचार के बाद केंद्र व विभिन्न राज्यों की सरकारों ने

पूरन सरमा स्वतंत्र लेखक प्राचीन काल में कलाओं की संख्या अत्यंत सीमित थी। यहां तक कि उनका अपना शास्त्र तथा व्याकरण था तथा वे सामाजिक अभ्युत्थान में महती भूमिका भी अदा करती थीं। समय की बलिहारी, आज कलाएं असीमित हो गई हैं तथा वे बिना किसी शास्त्र व विधान के धड़ल्ले से चलने लगी हैं।

इस समस्या से बचने का एक ही तरीका है कि हम कुटीर उद्योगों पर फिर से ध्यान दें, उन्हें तकनीक का लाभ लेना सिखाएं। दस्तकारों को प्रोत्साहित करें, उनका सामान खरीदें और उसके निर्यात के लिए अधिक से अधिक बाजार ढूंढें। यह सच है कि भविष्य में तकनीक सिर्फ  एक सपोर्ट-सिस्टम न रहकर उद्योगों की

लाजिमी है कि खुशनुमा पर्वतों का प्राकृतिक स्वरूप बदलने से पहले इन पहाड़ों के संवेदनशील मिजाज, खुसूसियत व इनके प्राचीन रहस्यों के बारे में जानना जरूरी है। देश में किसी भी संवेदनशील विषय पर टीवी डिबेट, विश्लेषण, मंथन व शोध विकराल आपदा के बाद ही शुरू होता है। विनाशलीला को प्राकृतिक आपदा की दलीलें देकर

सुरेश सेठ sethsuresh25U@gmail.com जनाबे आली, आपको क्या बताएं, आजकल हमारी दुनिया में चोर-सिपाही खेलने का रिवाज़ खत्म हो गया है। अब जब चौकीदार चोर कहलाने लगें और सिपाही गिरहकट तो भला चोर-सिपाही का खेल खेलें भी तो कैसे? पिछले ज़माने में भी यह खेल अधूरा ही रहता था। सिपाही चोर के पीछे भागता तो था,

इस कमेटी ने खतरे की आशंका को भांपते हुए अलकनंदा और भागीरथी पर बनी 23 जलविद्युत परियोजनाओं को बंद करने की सिफारिश की थी। सभी जगह हमारे पहाड़ व्यापारिक और आर्थिक दोहन का शिकार हो रहे हैं। आखिरकार हम प्रकृति और पर्यावरण के प्रति आर्थिक फायदों के लिए इतने क्रूर क्यों हो गए हैं… पहाड़ी