प्रतिबिम्ब

प्रख्यात कवि राजेंद्र कृष्ण ने अपनी ‘अम्मा’ की स्मृतियों के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए अपने काव्य संग्रह ‘अम्मा बोली’ में शब्दों की पावन माला अर्पित की है। इस काव्य संग्रह में कई कविताएं संकलित हैं जो अनुभवों का खजाना लगती हैं। कविताओं के माध्यम से कवि ने मानव जीवन से जुड़े अनेक प्रश्नों का

अमरदेव आंगिरस मो.-9418165573 दूरदर्शन एवं सोशल मीडिया से पूर्व गांव और शहर में एक सामाजिक मेलजोल का वातावरण था। गांव के चौराहों अथवा शहरों के बाजारों में एक साथ चलना-फिरना, पास-पड़ोस के लोगों से अंतरंग बातें करना स्वाभाविक रूप से होता था। जन्म दिन, पर्व-त्योहारों में भारतीय परंपराओं से श्रद्धा और विश्वास से एक-दूसरे से

विमर्श के बिंदु अतिथि संपादक : डा. गौतम शर्मा व्यथित हिमाचली लोक साहित्य एवं सांस्कृतिक विवेचन -28 -लोक साहित्य की हिमाचली परंपरा -साहित्य से दूर होता हिमाचली लोक -हिमाचली लोक साहित्य का स्वरूप -हिमाचली बोलियों के बंद दरवाजे -हिमाचली बोलियों में साहित्यिक उर्वरता -हिमाचली बोलियों में सामाजिक-सांस्कृतिक नेतृत्व -सांस्कृतिक विरासत के लेखकीय सरोकार -हिमाचली इतिहास

रमेश चंद्र मस्ताना की पुस्तक ‘मिट्टिया दी पकड़ आज ही हाथ लगी। पुस्तक को पहाड़ी में लिखा गया है। इसमें कांगड़ा जनपद के तमाम रीति-रिवाज दर्ज हैं। पुस्तक में रीति-रिवाजों के साथ-साथ इतिहास को भी विस्तृत रूप से जगह दी गई है। ऐसा ही एक प्रयास बहुत पहले संयुक्त पंजाब का हिस्सा रहे कांगड़ा के

डा. हेमराज कौशिक अपनी गागर में साहित्य के सागर को निचोड़ते डा. हेमराज कौशिक फिर ‘कथा समय की गतिशीलताÓ के साथ विमर्श के एक साथ कई संगम पैदा कर रहे हैं। पुस्तक में साहित्य के कई पात्र, प्रेरक व प्रतिबोधक अपनी-अपनी परिस्थितियों की जमीन, ऊर्जा, सरोकारों, विचारों, विचारधाराओं और सामाजिक विषमताओं को ओढ़े लेखन के

डा. रवींद्र कुमार ठाकुर मो.-9418638100 वर्तमान में लोक भौतिकवादी और यांत्रिक होता जा रहा है। इस स्थिति में यह स्वाभाविक है कि उसकी सोच का दायरा भौतिकवादी हो रहा है। परिणामस्वरूप वह लोक संस्कृति एवं नैतिकता से परे होता जा रहा है। इस ऊहापोह में यह डर लगने लगा है कि लोक संस्कृति कहीं लुप्त

चंचल सरोलवी मो.-9418453314 लोकसाहित्य की दृष्टि से हिमाचल कितना संपन्न है, यह हमारी इस शृंखला का विषय है। यह शृांखला हिमाचली लोकसाहित्य के विविध आयामों से परिचित करवाती है। प्रस्तुत है इसकी 27वीं किस्त… चंबा लोकसाहित्य की अनेक विधाओं में लोक गाथा गायन की भी समृद्ध परंपरा प्रचलित है। इन विधाओं में ऐंचल़ी व मुसाधा

अतिथि संपादक : डा. गौतम शर्मा व्यथित विमर्श के बिंदु हिमाचली लोक साहित्य एवं सांस्कृतिक विवेचन -26 -लोक साहित्य की हिमाचली परंपरा -साहित्य से दूर होता हिमाचली लोक -हिमाचली लोक साहित्य का स्वरूप -हिमाचली बोलियों के बंद दरवाजे -हिमाचली बोलियों में साहित्यिक उर्वरता -हिमाचली बोलियों में सामाजिक-सांस्कृतिक नेतृत्व -सांस्कृतिक विरासत के लेखकीय सरोकार -हिमाचली इतिहास

जैसे फलक पर कविता खुद चल कर आई हो, बिना किसी सिफारिश के घूंघट हटाने का फैसला लिए हुए। इरावती की तरह, नदी में नाव की तरह। एक साथ पचहत्तर कवि, एक अनूठे संगम पर और सारे देश की कविताएं वहीं कहीं इरावती के तट पर नहा रही हैं। इरावती के भीतर पहली बार कई