प्रतिबिम्ब

‘मन मंथन’,  ‘भैरों कभी नहीं मरा’ और ‘गीता बोल रही हूं’ उपन्यासों के बाद ‘एक थी रानी खैरीगढ़ी’ गंगा राम राजी का चौथा उपन्यास है। यह ऐतिहासिक उपन्यास भारतीय स्वतंत्रता-आंदोलन में ब्रिटिश कालीन हिंदुस्तान के एक छोटे से राज्य मंडी के योगदान की कहानी को बहुत सुंदर ढंग से सामने ले आता है। बीसवीं सदी

लोकसाहित्य की दृष्टि से हिमाचल कितना संपन्न है, यह हमारी इस शृंखला का विषय है। यह शृांखला हिमाचली लोकसाहित्य के विविध आयामों से परिचित करवाती है। प्रस्तुत है इसकी 22वीं किस्त… अतिथि संपादक :  डा. गौतम शर्मा व्यथित मो.- 9418130860 विमर्श के  बिंदु हिमाचली लोक साहित्य एवं सांस्कृतिक विवेचन -22 -लोक साहित्य की हिमाचली परंपरा

कुलभूषण उपमन्यु,  मो.-9418412853 चंबा जिला में चंबयाली, भरमौरी, चुराही, पंगुआली, भटियाली भाषा-बोलियों के क्षेत्रीय रूपों में भी लोकसाहित्य विविधा के अनेक रूप प्रचलन में हैं। चंबा जिला के लोकसाहित्य के विषय में राष्ट्र स्तर पर जानकारी हिंदी साहित्य के वृहद इतिहास के सोलहवें खंड में मिलती है जिसका संपादन महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने किया है।

10 जून 1950 को फगवाड़ा (पंजाब) में जन्मे डा. जवाहर धीर आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। यात्रा वृत्तांत, व्यंग्य लेख, लघुकथा, कहानी और कविता लेखन से अर्जित ख्याति के कारण ही आज वह जाने-माने लेखक हैं। उनकी नई पुस्तक ‘एक फीकी-सी मुस्कान’ प्रकाशित हो चुकी है। यह एक कहानी संग्रह है जिसमें 18

जयंती विशेष ‘मधुशाला’ जैसी वैयक्तिक स्वतंत्रता की पोषक रचना देने वाले सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार थे। अज्ञेय को प्रतिभासंपन्न कवि, शैलीकार, कथा साहित्य को एक महत्त्वपूर्ण मोड़ देने वाले कथाकार, ललित-निबंधकार, संपादक और सफल अध्यापक के रूप में जाना जाता है। अज्ञेय जी के पिता पंडित हीरानंद शास्त्री प्राचीन लिपियों के

अतिथि संपादक:  डा. गौतम शर्मा व्यथित हिमाचली लोक साहित्य एवं सांस्कृतिक विवेचन -21 विमर्श के बिंदु -लोक साहित्य की हिमाचली परंपरा -साहित्य से दूर होता हिमाचली लोक -हिमाचली लोक साहित्य का स्वरूप -हिमाचली बोलियों के बंद दरवाजे -हिमाचली बोलियों में साहित्यिक उर्वरता -हिमाचली बोलियों में सामाजिक-सांस्कृतिक नेतृत्व -सांस्कृतिक विरासत के लेखकीय सरोकार -हिमाचली इतिहास से

पुस्तक समीक्षा पर्यटन पर आधारित हिंदी की त्रैमासिक पत्रिका ‘प्रणाम पर्यटन’ का जनवरी-मार्च 2021 अंक ऐतिहासिक शहर औरंगाबाद पर केंद्रित है। इस अंक को पढ़कर पर्यटक तथा आम लोग प्रमुख औद्योगिक शहर औरंगाबाद के बारे में काफी कुछ जान पाएंगे। इस पत्रिका की खासियत यह है कि यह कोविड काल के कठिन दौर में भी

प्रो. सुरेश शर्मा,  मो.-9418026385 हिमाचल प्रदेश का जिला कांगड़ा ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, सामाजिक तथा राजनीतिक दृष्टि से अपना विशेष महत्त्व रखता है। इस जनपद की भाषा, बोली, खानपान, रहन-सहन, परिधान, रीति-रिवाज, त्योहार, उत्सव, मेले, विश्वास, मान्यताएं, परंपरागत कलाएं, लोक संगीत, लोक नाट्य, लोक साहित्य, लोक वाद्य, लोक नृत्य तथा चित्रकला अनायास ही सभी का मन मोह

जब राष्ट्र राजधानी दिल्ली के बगल में फंसे किसान आंदोलन को देख रहा है, ठीक इसी समय हिमाचली मिट्टी की सौंधी खुशबू में लिपटे उपन्यास ‘मुंडू’ को लेकर त्रिलोक मेहरा हाजिर हैं। आधुनिक हिमाचल का शारीरिक और बुनियादी गठन करता लेखक दरअसल प्रेमचंद सरीखा हो जाता है तथा वहीं उपन्यास की यात्रा अपनी पृष्ठभूमि चुनते