संपादकीय

राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल की नजर अगर न पड़ती तो हिमाचली सैरगाहें कभी आगाह नहीं होतीं। वैसे तो विभाग थे और नियम भी, लेकिन हिमाचल का ढर्रा कहां-कहां सुराख कर गया और कहां जारी है, इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता। जो एनजीटी देख या कह रहा है, उससे आज भी हिमाचल अनभिज्ञ प्रतीत होता है।

अमृतसर के अदलीवाल गांव में, निरंकारी सत्संग पर जो ग्रेनेड फेंका गया है, वह आतंकी हमले का ही एक रूप है। कई तो उसकी तुलना कश्मीर के आतंकी हमले से कर रहे हैं। 13 अप्रैल, 1978 को बैसाखी के दिन अमृतसर के ‘निरंकारी भवन’ पर ऐसा ही हमला किया गया था। नतीजतन अकालियों और निरंकारियों

बेशक हिमाचल की हवाएं बुलंदियों के तराने सुनाती हैं और नागरिकों से सरकार तक के सफर में तरक्की के पैगाम जोशो खरोश से लबालब हैं, फिर भी कहीं इस दौड़ ने पैमाने छीन लिए हैं। आखिर कितनी बार भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) के आने पर हमारे मेडिकल कालेज छिन्न भिन्न होते रहेंगे। अब सवाल फिर

सीबीआई देश की सबसे प्रमुख जांच एजेंसी है। बड़े घोटालों की जांच कर उन्हें निष्कर्ष तक पहुंचाती रही है। आज भी नीरव मोदी, मेहुल चोकसी, विजय माल्या के आर्थिक घोटालों और राज्यों के विवादों की जांच सीबीआई ही कर रही है। शीर्ष अदालत भी उसकी मुखापेक्षी है और प्रमुख घपलों की जांच उसी को सौंपती

मौत अपने सायों से बेहतर नहीं हो सकती और न ही इसे कायरता से कबूल किया जा सकता, फिर भी जीवन का समाहार तो मौत ही लिखती है। जीवन के संघर्ष पथ पर एक रिटायर्ड मेजर जनरल का हारना पूरे हिमाचल को चौंकाता है। आखिर किस मजबूरी में लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष व

हिमाचली सत्ता के मूल्यांकन में विधानसभा का शीतकालीन सत्र जब तपोवन में सजता है, तो राजनीतिक संतुलन से संदेश तक की परख भी होती है। ऐसे में तपोवन में इस बार जो इतिहास लिखा जाएगा, उसमें मुख्यमंत्री  के रूप में जयराम ठाकुर के व्यक्तित्व का तुलनात्मक अध्ययन व समीक्षा रेखांकित होगी। इरादों, परिपक्वता तथा दस्तूर

बेशक अफगानिस्तान के खिलाफ पाकपरस्त आतंकी ‘अघोषित युद्ध’ जारी रखे हों, लेकिन विश्व के कई मंचों पर पाकिस्तान को नंगा किया जाता रहा है। यहां तक कि भारत के प्रधानमंत्री मोदी और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में यह मुद्दा उठाते हुए पाकिस्तान को ‘आतंकवादी देश’ घोषित करने की भी मांग

स्टार्ट अप इंडिया की यात्रा में हिमाचल भी अपनी राह तलाशने निकला, तो परिणामों की प्रतीक्षा में मानसिक उल्लास की समीक्षा होगी। स्टार्ट अप हिमाचल के जरिए जिस रोडमैप पर जयराम सरकार अपने उद्देश्य तय करने निकली, वहां युवा संबोधन यकीनन बदल सकते हैं बशर्ते मानसिक बदलाव और भविष्य की चुनौतियों के प्रति समूची उत्प्रेरणा

लोकतंत्र एक व्यक्ति, एक परिवार की बपौती नहीं है। बेशक जवाहर लाल नेहरू हमारे देश के प्रथम प्रधानमंत्री थे, लिहाजा आधुनिक भारत के निर्माता भी बने। स्वतंत्रता की लड़ाई उन्होंने भी लड़ी और करीब 9 साल वह जेल में भी रहे। चूंकि देश गुलामी की जंजीरों से स्वतंत्र हुआ था, लिहाजा हरेक शुरुआत हमें ‘शून्य’