विचार

‘16 दिसंबर, 2012 की रात निर्भया के साथ जो हुआ, वह इतना बर्बर, क्रूर, राक्षसी था कि उसने दुनिया में ‘सदमे की सुनामी’ पैदा कर दी। ऐसा लगता है मानो वह किसी दूसरी दुनिया की कहानी है। ऐसे अपराधियों के लिए कानून में किसी भी तरह के रहम की गुंजाइश नहीं है। यह जघन्य से

सुरेश कुमार लेखक, योल , कांगड़ा से हैं हिमाचल खेलों में पंजाब-हरियाणा के सामने कहीं नहीं ठहरता। इन राज्यों में खिलाडि़यों को हर वह सुविधा सरकार द्वारा दी जाती है, जो खेलों के लिए जरूरी होती है और हिमाचल में ऐसा कुछ भी नहीं है। जिस प्रदेश की बख्शो देवी ठंड में नंगे पांव दौड़

(वर्षा शर्मा, पालमपुर, कांगड़ा) निर्भया मामले में फैसला सुनाने वाले न्यायाधीशों का एक सुझाव यह भी है कि शिक्षा पाठ्यक्रमों में लैंगिक समानता का विषय भी जोड़ा जाए। यह एक सराहनीय व अनुकरणीय सुझाव है। अगर उचित विषय वस्तु तैयार करके इसे स्कूलों में पढ़ाया जाए, तो हो सकता है कि मानसिकता को विकृत होने

(अमित सिंह, बैजनाथ, कांगड़ा) भारत का जनमानस आज सत्ताशीर्ष से एक ही सवाल पूछ रहा है कि आखिर कब तक हमारे वीर सैनिक अपना बलिदान देते रहेंगे। उन वीर सैनिकों का बलिदान उनकी कमजोरी नहीं, वरन सत्ताशीर्ष पर विराजमान राजनीतिक कमजोरी के कारण है। चंद कायर नक्सलियों, पाक प्रायोजित पत्थरबाजों व आतंकियों के हाथों हमारे

गांवों में खोले जा रहे शराब ठेकों के खिलाफ महिलाओं ने आवाज बुलंद कर दी है, वहीं सरकार की आमदनी का बड़ा हिस्सा शराब के कारोबार से ही आता है ,लिहाजा प्रदेश सरकार शराब को बैन भी नहीं कर सकती और लोगों के विरोध को अनदेखा भी नहीं किया जा सकता.. आइए जानें आखिरकार महिलाएं

बेशक राजनीतिक मंचों पर हिमाचल का जिक्र अब देवभूमि से वीरभूमि तक होना स्वाभाविक है, लेकिन इसकी समीक्षा न सहज है और न ही सरल। भाजपा ने पालमपुर बैठक में अपने अंदाज से लेकर राजनीतिक रुआब तक जो माहौल खड़ा किया उसका हर क्षण आत्मश्लाघा से आत्मविभोर कर सकता है, लेकिन क्या हिमाचल की सियासत

खेल, कला, फिल्म, साहित्य, संस्कृति और आतंकवाद साथ-साथ नहीं चल सकते। युद्ध का मैदान और जनता-दर-जनता संबंध स्थापित नहीं हो सकते। ये स्थितियां आपस में पर्याय ही हैं। ये कथन पहले भी कहे जा चुके हैं। अब ज्यादा प्रासंगिक हैं। भारत सरकार ने पाकिस्तान की कबड्डी और स्क्वॉश टीम को एशियन चैंपियनशिप के लिए वीजा

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं ये जो बंद दरवाजों के पीछे तलाक, तलाक, तलाक चिल्लाने के बाद अट्टहास कर रहे हैं, उनका कहना है कि उनका मजहब उन्हें अपनी पत्नी को केवल तीन बार तलाक शब्द के उच्चारण मात्र से पत्नी को छोड़ने का अधिकार देता है। कोई भी मजहब इस प्रकार

( डा. राजन मल्होत्रा, पालमपुर ) पूरे देश को झकझोर देने वाले निर्भया मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय ने बड़ा फैसला सुनाया है। इसमें मामले के दोषियों की फांसी की सजा कायम रखी है। पांच वर्ष पहले हुई दिल दहला देने वाली घटना का यह मामला अब अपने अंतिम पड़ाव तक पहुंच चुका है। शीर्ष