आस्था

मां दुर्गा की कहानी के पीछे यह संदेश है कि कर्म की अपनी जगह होती है। केवल अकेले संकल्प के होने से काम नहीं होता। देखिए भगवान ने हमें हाथ और पैर दिए हैं ताकि हम काम कर सकें। देवी माता के इतने सारे हाथ क्यों हैं। इसका तात्पर्य यह है कि भगवान भी काम

गतांक से आगे… माता जी के नामों से संकल्प पूर्वक यह अनुष्ठान प्रारंभ हुआ। ब्रह्मचारी कृष्णलाल महाराज इस अनुष्ठान के पुरोहित बने। तंत्रधारक का आसन ग्रहण किया। इस अनुष्ठान की समाप्ति पर पशु बलि न देकर मिष्ठान का नैवेद्य प्रस्तुत किया गया। सैकड़ों लोगों को भोजन कराया गया, अनेक ब्राह्मणों को भोजन के लिए आमंत्रित

भगवान निम्नतम चित्तदशा के लिए भी कह रहे हैं कि इस दशा में भी, इस अंधकार में पड़ा हुआ भी यदि कोई अनन्य भाव से प्रभु का स्मरण करता है, तो ईश्वरीय ज्ञान की प्रकाश रूपी किरण इस तक भी पहुंच जाती है और यह मुक्त हो जाता है। अब वैश्य दूसरी कोटि है। वैश्य

ठीक पूछा है। क्योंकि हम तो हर बात के लिए पूछेंगे कि किसलिए? कोई कारण हो पाने के लिए तो ठीक है, कुछ दिखाई पड़े कि धन मिलेगा, यश मिलेगा, गौरव मिलेगा, कुछ मिलेगा, तो फिर हम कुछ कोशिश करें। क्योंकि जीवन में हम कोई भी काम तभी करते हैं जब कुछ मिलने को हो।

शरीर को स्वस्थ बनाए रखने और बीमारियों से बचाने के लिए रोज पोषण की आवश्यकता होती है। इसलिए हर रोज ऐसे आहार का सेवन करना चाहिए जिसमें विटामिन, प्रोटीन, फाइबर, आयरन, कैल्शियम जैसे सारे पौष्टिक तत्त्व मौजूद हों। इनमें हरी सब्जियां, साबुत अनाज और ताजे फल भी आते हैं। स्वस्थ शरीर के लिए इन आहारों

होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति की शुरुआत 1796 में डा. सैम्युल हैनिमन द्वारा जर्मनी से हुई। डा. सैम्युल हैनिमन एक एलोपैथिक चिकित्सक थे, जो अपनी चिकित्सा प्रणाली के दुष्प्रभावों की वजह से इस प्रणाली से असंतुष्ट थे। इसी कारण इन दुष्प्रभावों को खत्म करने के लिए उन्होंने कई वर्षों के शोध के बाद होम्योपैथिक चिकित्सा प्रणाली की

– डा. जगीर सिंह पठानिया : सेवानिवृत्त संयुक्त निदेशक, आयुर्वेद, बनखंडी कद्दू को इंग्लिश में पम्पकिन कहते हैं। इसका बेलनुमा पौधा होता है, जिसकी हर वर्ष गर्मियों व बरसात में खेती की जाती है। कद्दू का उपयोग समान्यतया सब्जियां बनाने के लिए किया जाता है तथा उबाल कर इसका हलवा भी बनया जाता है व इसके बीजों

* केवल सेंधा नमक का प्रयोग करें, थाइराइड, बीपी और पेट दर्द ठीक रहेगा। * तिल के तेल में काली मिर्च  को जलने तक गर्म करें, फिर ठंडा होने पर तेल को हल्के हाथों से लगाएं। जोड़ों के दर्द से तुरंत आराम मिलेगा। * मेथी के बीज एक चम्मच की मात्रा में रात भर पानी

श्राद्ध पूर्वजों के प्रति सच्ची श्रद्धा का प्रतीक है। पितरों के निमित्त विधिपूर्वक जो कर्म श्रद्धा से किया जाता है, उसी को श्राद्ध कहते हैं। ब्रह्म पुराण के अनुसार श्राद्ध की परिभाषा है, जो कुछ उचित काल, पात्र एवं स्थान के अनुसार उचित (शास्त्रानुमोदित) विधि द्वारा पितरों को लक्ष्य करके श्रद्धापूर्वक ब्राह्मणों को दिया जाता